सोमवार, 15 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू राम हृदय रस भेलि कर, को साधु शब्द सुनाइ ।*
*जानो कर दीपक दिया, भ्रम तिमिर सब जाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ शब्द का अंग)*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

मनुष्यता तो एक शब्द मात्र है, कोरा शब्द। ठोस तो मनुष्य है। मगर तरकीब काम कर जाएगी। आदमियों को तो घृणा करेंगे और मनुष्यता की पूजा करेंगे। ऐसा भी हो सकता है कि मनुष्यता के प्रेम के पीछे मनुष्यों की हत्या करनी पड़े तो कर दो।
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ऐसा ही तो कर रहे हैं लोग। मुसलमान हिंदुओं को मार डालते हैं। वे कहते हैं ईश्वर की सेवा कर रहे हैं। ईश्वर कोरा शब्द है। और जो ठोस है उसे विनाश कर रहे हैं, और शाब्दिक प्रत्यय मात्र के लिए, धारणा मात्र के लिए। मनुष्य बहुत बेईमान है। व्यक्तित्व का मतलब क्या होता है? कहाँ पाएंगे व्यक्तित्व को? व्यक्ति से अलग कहीं व्यक्तित्व होता?
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कहते हैं, नर्तक की फिकर नहीं करते; नृत्य की पूजा करेंगे। लेकिन नर्तक के बिना नृत्य कहीं होता है? और जब भी नृत्य की पूजा करने जाएंगे तो नर्तक को पाएंगे। भाव—भंगिमाएं नर्तन की, नर्तक की भाव— भंगिमाएं हैं। व्यक्तित्व की पूजा का क्या अर्थ होता है? शब्दों से बचें, ठोस को ग्रहण करें; ठोस है वास्तविक, यथार्थ। शाब्दिक जाल में न पड़ें।
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अगर बुद्ध मिल जाएं तो यह न कहें कि हम तो बुद्धत्व की पूजा करेंगे। बुद्धत्व को कहां पाएंगे? जब भी पाएंगे बुद्ध को पाएंगे। और बुद्धत्व अगर कहीं मिलेगा तो बुद्ध की छाया की तरह मिलेगा। कहते हैं छाया की पूजा करेंगे; मूल की पूजा न करेंगे। कहते हैं जिनत्व की पूजा करेंगे, महावीर से क्या लेना—देना?
लेकिन जरा गौर करें, कहीं अहंकार धोखा तो नहीं दे रहा है? अहंकार तर्क तो नहीं खोज रहा है? अहंकार यह तो नहीं कर रहा है इंतजाम, कि देखो पूजा से बचा दिया, समर्पण से बचा दिया, विनम्र होने से बचा दिया। अब खोजते रहें बुद्धत्व को, जिनत्व को। कहीं मिलेगा नहीं, तो झुकने का कोई सवाल ही न आएगा।
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अब यह बड़े मजे की बात है, जीवन के सामान्य तल पर कोई भी ऐसा नहीं करता। जब कोई किसी स्त्री के प्रेम में पड़ता है तो स्त्रीत्व को प्रेम नहीं करता, वो स्त्री के प्रेम में पड़ता है। तब वो यह धोखा नहीं करता। यह नहीं कहता कि हम तो स्त्रीत्व को प्रेम करेंगे; स्त्री को क्या करना ! कहता है क्या? तब यह नहीं कहता। तब तो वो स्त्री के प्रेम में पड़ता है। तब वो शब्द की बात नहीं करता, तब वो सत्य को पकड़ता है।
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जहां मनुष्य पकड़ना चाहता हैं, वहां सत्य को पकड़ता है; जहां नहीं पकड़ना चाहता, जहां बचना चाहता है, वहां शब्दों के जाल फैलाता है। जब प्रेम करेंगे तो स्त्री को प्रेम करना होगा, स्त्रीत्व को प्रेम नहीं किया जाता। जब प्रेम करना होगा तो गुरु को प्रेम करना होगा, गुरुत्व को प्रेम नहीं किया जाता। और जब करना होगा समर्पण तो बुद्ध को करना होगा, बुद्धत्व को समर्पण नहीं किया जाता।
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ये शब्द—जाल हैं। और अहंकार बड़ा कुशल है इन जालों में अपने को छिपा लेने के लिए। इस अहंकार से सावधान रहें झुकें, समर्पण करें तो स्वयं को ही पा लेंगे। माध्यम होगा कोई, पाएंगें अपने को हीं—किसी के द्वार से। गुरु द्वार है। गुरुद्वारा। उसके द्वार से अपने पर ही लौट आएंगे।

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