शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*नाहीं ह्वै करि नाम ले, कुछ न कहाई रे ।*
*साहिब जी की सेज पर, दादू जाई रे ॥* 
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साभार ~ Atul Tock
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*स्वधर्मरूपी यज्ञ।* व्यक्ति यदि अपनी निजता को, अपनी इंडिविजुअलिटी को, उसके भीतर जो बीजरूप से छिपा है उसे, फूल की तरह खिला सके, तो भी वह खिला हुआ व्यक्तित्व का फूल परमात्मा के चरणों में समर्पित हो जाता है और स्वीकृत भी।
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व्यक्ति की भी एक फ्लावरिंग है; व्यक्ति का भी फूल की भांति खिलना होता है। और जब भी कोई व्यक्ति पूरा खिल जाता है, तभी वह नैवेद्य बन जाता है। वह भी प्रभु के चरणों में समर्पित और स्वीकृत हो जाता है।
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फूल की तरह व्यक्ति के साथ भी दुर्घटनाएं घट सकती हैं। यदि कोई गुलाब का फूल कमल का फूल होना चाहे, तो दुर्घटना सुनिश्चित है। दुर्घटना के दो पहलू होंगे। एक तो गुलाब का फूल कुछ भी चाहे, कमल का फूल नहीं हो सकता है। वह उसकी नियति, उसकी डेस्टिनी नहीं है। वह उसके भीतर छिपा हुआ बीज नहीं है। वह उसकी संभावना नहीं है।
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इसलिए गुलाब का फूल विक्षिप्त हो सकता है कमल के फूल होने में, कमल का फूल नहीं हो सकता। कमल के फूल होने में पीड़ित, दुखी, परेशान हो सकता है; चिंतित, संतापग्रस्त हो सकता है; नींद खो सकता, चैन खो सकता; कमल का फूल हो नहीं सकता है। होने की दौड़ में मिटेगा, बर्बाद होगा; पहुंचेगा नहीं मंजिल तक। यात्रा कितनी ही करे, लौट-लौटकर गुलाब का फूल ही रहेगा। पहुंचेगा नहीं कमल होने तक। न पहुंचने से फ्रस्ट्रेशन, न पहुंचने से विषाद मन को पकड़ता है। और जिसके चित्त को विषाद पकड़ लेता, उसके चित्त में नास्तिकता का जन्म हो जाता है। इसे ठीक से खयाल में ले लें।
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विषाद से भरा हुआ चित्त आस्तिक नहीं हो सकता है। पीड़ा से भरा हुआ चित्त, दुख से भरा हुआ चित्त, फ्रस्ट्रेटेड चित्त आस्तिक नहीं हो सकता, क्योंकि आस्तिकता आती है अनुग्रह के भाव से, ग्रेटिटयूड से। और विषाद में अनुग्रह का भाव कैसे पैदा होगा? अनुग्रह का भाव तो आनंद में पैदा होता है। जब कोई आनंद से भरता है, तो अनुगृहीत होता है, तो ग्रेटिटयूड पैदा होता है।
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सिमन वेल ने एक किताब लिखी है, ग्रेस एंड ग्रेविटी–प्रसाद और गुरुत्वाकर्षण। बहुमूल्य है; इस सदी की बहुमूल्य किताबों में से एक है। सिमन वेल कहती है कि जैसे जमीन चीजों को अपनी तरफ खींचती है, ऐसे ही परमात्मा भी चीजों को अपनी तरफ खींचता है।
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जमीन चीजों को अपनी तरफ खींचती है। उसकी एक छिपी हुई ऊर्जा, शक्ति का नाम ग्रेविटेशन, गुरुत्वाकर्षण है। दिखाई कहीं नहीं पड़ता, लेकिन पत्थर को फेंको ऊपर, वह नीचे आ जाता है। वृक्ष से फल गिरा, नीचे आ जाता है। दिखाई कहीं भी नहीं पड़ता।
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हम सबको कहानी पता है कि न्यूटन एक बगीचे में बैठा है और सेव का फल गिरा है। और उसके मन में सवाल उठा कि फल गिरता है, तो नीचे ही क्यों आता है, ऊपर क्यों नहीं चला जाता? दाएं-बाएं क्यों नहीं चला जाता? ठीक नीचे ही क्यों चला आता है? चीजें गिरती हैं, तो नीचे क्यों आ जाती हैं? और तब उसे पहली दफा खयाल आया कि जमीन से कोई ऊर्जा, कोई शक्ति चीजों को अपनी तरफ खींचती है; कोई मैग्नेटिक, कोई चुंबकीय शक्ति चीजों को अपनी तरफ खींचती है। फिर ग्रेविटेशन सिद्ध हुआ। अभी भी दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन परिणाम दिखाई पड़ते हैं।
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सिमन वेल कहती है, ठीक ऐसे ही परमात्मा भी चीजों को अपनी तरफ खींचता है। उसके खींचने का जो ग्रेविटेशन है, उसका नाम ग्रेस, उसका नाम प्रसाद; अनुकंपा, अनुग्रह, जो भी हम नाम देना चाहें।
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यह बड़े मजे की बात है कि जब फूल खिलता है, तो आकाश की तरफ उठता है। और जब मुरझाता है, सूखता है, तो जमीन की तरफ गिर जाता है। आदमी जीवित होता है, तो आकाश की तरफ उठा हुआ होता है। मर जाता है, तो जमीन में दफना दिया जाता है, मिट्टी में गिर जाता है। वृक्ष उठते हैं, जीवित होते हैं, तो आकाश की तरफ उठते हैं। फिर जराजीर्ण होते हैं, गिरते और मिट्टी में सो जाते हैं। ऊपर और नीचे। कुछ ऊपर की तरफ खींच रहा है, कुछ नीचे की तरफ खींच रहा है।
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विषाद जब चित्त में होता है, तो आदमी का हृदय पत्थर की तरह हो जाता है, नीचे की तरफ गिरने लगता है। जब भी आप दुख में रहे हैं, तब आपने अनुभव किया होगा कि हृदय पर हजारों मनों का बोझ हो जाता है। फिर जमीन तो नीचे की तरफ खींचती है, लेकिन परमात्मा फिर ऊपर की तरफ खींचता हुआ मालूम नहीं पड़ता। इसलिए दुख में आदमी मरना चाहता है। मरना चाहता है मतलब, जमीन के ग्रेविटेशन में दफन हो जाना चाहता है। दुख में आत्महत्या कर लेना चाहता है; मतलब, डस्ट अनटु डस्ट, मिट्टी मिट्टी में लौट जाए, इसके लिए आतुर हो जाता है।
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ठीक इससे उलटी घटना भी घटती है। जब कोई आनंद से भरता है, तो कांशसनेस अनटु कांशसनेस–मिट्टी में मिट्टी नहीं–परमात्मा में परमात्मा मिलने को आतुर हो जाता है
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और जब कोई उतने आनंद से भरता है, तो परमात्मा को धन्यवाद दे पाता है। कहना चाहिए, धन्यवाद देने के लिए परमात्मा को स्वीकार कर पाता है। अनुग्रह फिर किसके प्रति प्रकट करे? जब भीतर आनंद की वर्षा होने लगे और हृदय का कोना-कोना नाच उठे और अंधकार विदा हो जाए और पंखुड़ी-पंखुड़ी खिल जाए, फिर धन्यवाद किसके प्रति प्रकट करे? उस धन्यवाद को प्रकट करने के लिए परमात्मा को खोजना पड़ता है।
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गुलाब का फूल कमल होना चाहे, तो ऐसा होगा, एक पहलू। और दूसरा पहलू यह कि गुलाब की ताकत अगर कमल होने की कोशिश में लग जाए, तो गुलाब फिर गुलाब कभी नहीं हो पाएगा। क्योंकि ताकत सीमित है, क्षमता निश्चित है। ऊर्जा बंधी हुई मिली है प्रत्येक को, नपी हुई मिली है प्रत्येक को। अगर उसे इतर, यहां-वहां खर्च किया, तो अपनी नियति को पूरा नहीं किया जा सकता।

इसलिए कृष्ण कहते हैं, स्वधर्मरूपी यज्ञ में !
यह स्वधर्मरूपी यज्ञ बहुत ही गहरी मनोवैज्ञानिक धारणा है। मनुष्य ने अपने इतिहास में जो भी गहरे से गहरे मनोवैज्ञानिक सत्य खोजे हैं, उनमें स्वधर्म का सत्य सर्वाधिक गहरा है।
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यह पृथ्वी आज इतने दुख से भरी दिखाई पड़ती है, उसका मौलिक कारण स्वधर्म से च्युत हो जाना है। कोई भी आदमी वही नहीं हो रहा है, जो वह होने को है। हर आदमी कुछ और होने में लगा है! हम सब कुछ और होने में लगे हैं, जो हम नहीं हो सकते हैं।
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कृष्ण कहते हैं, यह भी बड़े से बड़ा यज्ञ है अर्जुन, अगर तू इतना भी पूरा कर ले, या कोई भी पूरा कर ले, तो भी प्रभु को उपलब्ध हो जाता है, परम अवस्था को उपलब्ध हो जाता है।
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ओशो – गीता-दर्शन – भाग दो, (अध्याय ४)
बारहवां प्रवचन - अंतर्वाणी-विद्या

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