#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*शब्द दूध घृत राम रस, कोई साध बिलोवणहार ।*
*दादू अमृत काढ़ि ले, गुरुमुखि गहै विचार ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*शब्द परीक्षा का अंग ७३*
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दोष न उपजै किसी के, सुनत शब्द निर्दोष ।
वकता के बंधन खुलै, अरु श्रोता ह्वै मोष१ ॥२१॥
निर्दोष शब्द सुनने से किसी के भी हृदय में काम-क्रोधादि दोष नहीं उत्पन्न होते और बोलने वाले के भी रोगादि रूप बन्धन खुल जाते हैं तथा सुनने वाला भी मुक्त१ हो जाता है ।
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काया केलि शुक्ति हि मुक्त, शब्द स्वाति जल पोष ।
मुर मानो यूं उपजै, वहाँ दखल नहिं दोष ॥२२॥
केलि को स्वाति जल से पोष मिलता है तब कपूर उत्पन्न होता है, सीप को स्वाति जल से पोष मिलता है तब मोती उत्पन्न होता है, शरीर को गुरु के शब्दों से पोष मिलता है तब ज्ञान उत्पन्न होता है निश्चय करके मानो ये तीनों इसी प्रकार उत्पन्न होते हैं, ज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् उस हृदय में भी कोई भी दोष अपना अधिकार नहीं जमा सकता ।
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गवन गाँव ने बात१ बल, विषय वायु की आँधी ।
रज्जब रज तज काढ तों, मारुत की गति लाधी ॥२३॥
शब्दों द्वारा समाधि रूप ग्राम को जान कर शब्द१ बल वा प्राण वायु के प्राणायाम रूप बल से गमन किया जाता है, किन्तु विषय - वायु की राग रूप आँधी आ जाय तो गति रुक जाती है, फिर गुरु के शब्दों द्वारा ही रजोगुण रूप रज को त्यागकर वृति को विषय राग से नीकाली जाती है तब सुषुम्न में प्राण वायु जाने की रीति मिलती है अत: समाधि में भी शब्द - सहायता से ही पहुँचा जाता है, इसलिये सम्यक रीति से शब्द परीक्षा करना चाहिये ।
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इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित शब्द परीक्षा का अंग ७३ समाप्त ॥सा. २२७४॥
(क्रमशः)
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