बुधवार, 1 मई 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*भक्ति भक्ति सब कोइ कहै, भक्ति न जाने कोइ ।*
*दादू भक्ति भगवंत की, देह निरन्तर होइ ॥*
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साभार ~ Soni Manoj

"ध्यान" किसी आध्यात्मिक लाभ या सफलता का प्रलोभन नहीं देता । 🍄 
● ध्यानी सफलता की फिक्र ही कहां करता है ? ध्यान में उतर गए, यही सफलता है । ध्यान में मजा आ गया यही सफलता है । ध्यान में डोल लिए, यही सफलता है । 
मेरे पास लोग आते हैं -- दुकानदार किस्म के लोग -- तो वे पूछते हैं : 'ध्यान करेंगे तो इससे क्या लाभ होगा ?' लाभ पहले ! ये वे ही लोग जो लिखे रहते हैं अपनी दुकान पर : लाभ-हानि । खाता-बही शुरू करते हैं तो पहले लिखते हैं : लाभ, शुभ लाभ । श्री गणेशाय नम: ! इनको लाभ ही लाभ की पड़ी है । लाभ क्या होगा ! 
तुम्हें ध्यान का पता नहीं । तुम वैसी ही बात पूछ रहे हो जैसे कोई पूछे कि प्रेम का क्या लाभ है ! प्रेम का कोई लाभ होता है ? प्रेम स्वयं ही अपना अंत है, किसी चीज का साधन नहीं है । प्रेम अपने में आनंद है । इससे कुछ लाभ नहीं होता । ऐसा नहीं कि प्रेम में गहरे उतर जाओगे तो एकदम धन-सम्पत्ति बढे़गी । मगर तुम प्रार्थना भी ऐसे ही करते हो - जय जगदीश हरे । उसमें तुम देखो, आते हैं यह वचन -- धन-सम्पत्ति बढे़ । 
वे ही लोग यहां आ जाते हैं, वे कहते हैं -- जय रजनीश हरे ! धन-सम्पत्ति बढे़ !' कुछ फर्क नहीं । मैं बैठा होता हूं, सुनता हूं, मस्त होता हूं कि वाह, क्या गजब के बीमार हैं । जहां जाएंगे वहीं बीमारी ले कर पहुंचेंगे । ..... 'सुख-संपत्ति घर आवे !' हर जगह सफलता ! सो तुम बीच-बीच में देख रहे होओगे कि छप्पर अभी तक टूटा कि नहीं, क्योंकि वह जब देता है छप्पर तोड़ कर देता है । छाता वगैरह लगा कर करते हो ध्यान कि नहीं ? नहीं तो एकदम छप्पर टूट जाए और एकदम धन बरसे और खोपड़ी खुल जाए । 
सफलता किस बात की ? सफलता से जो जाग गया है वही ध्यान में उतरता है, जो समझ लिया कि सफलता-असफलता सब बच्चों के खेल हैं, दो कौड़ी की बातें हैं । सफल भी हो गए तो क्या ? असफल भी हो गए तो क्या ? यहां हार क्या, जीत क्या ? जैसे शतरंज में कोई हार जाए कि शतरंज में कोई जीत जाए । मगर तलवारें खिंच जाती हैं वहां भी । ऐसे मूढ़ पडे़ हैं दुनिया में -- महामूढ़ ! शतरंज खेल रहे हैं, कुछ असली नहीं; नकली घोड़े, नकली हाथी; न राजा असली न वजीर असली, सब लकड़ी के खिलौने -- मगर तलवारें खिंच जाएंगी, क्योंकि हार गए ! ताश खेलते हैं, लट्ठ चल जाते हैं, क्योंकि हार गए, किसी ने धोखा दे दिया । 
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तुम्हारे मन में सफलता और असफलता का जो रोग है वही तो संसार है । ध्यान उन्हें मिलता है जो इस बात से छूट गए; जिसने देख लिया कि यहां सफल भी हो जाओ तो भी असफल हो, असफल होओ तो तो असफल हो ही । इस जगत में सब खिलवाड़ चल रहा है । अपने भीतर, डुबकी मारनी है । क्या सफलता क्या असफलता । अपने भीतर विराजमान हो जाना है । 
मगर अगर तुमने यह ध्यान रखा बार-बार कि अभी तक सफलता मिली कि नहीं मिली, तो बस अड़चन हो जाएगी । वही बाधा बन जाएगी । उसी के कारण तुम्हारा अटकाव हो जाएगा । बीच-बीच में आंख खोल कर देख लोगे : 'अभी तक सफलता नहीं मिली । कब तक मिलेगी ! बड़ी देर हुई जा रही है ।' 
यहां सफलताओं का कोई आश्वासन ही नहीं देता मैं । वे तुम्हारे थोथे गुरु तुम्हें सफलता का आश्वासन देते हैं । 
महर्षि महेश योगी लोगों को समझाते हैं कि आध्यात्मिक भी लाभ होगा -- अगर तुमने भावातीत ध्यान किया --- और भौतिक लाभ भी होगा । नौकरी में बढ़ती होगी, पद बढे़गा, प्रतिष्ठा बढे़गी । जिनको नौकरी नहीं है उनको नौकरी मिलेगी । स्वास्थ्य भी अच्छा होगा । बीमारियां दूर होंगी । और आध्यात्मिक लाभ, वह तो अलग ही है; वह तो समझो ब्याज । मूल चीजें तो ये हैं । लोग कहते हैं कि फिर क्यों छोड़ना ! जब सभी कुछ मिलने वाला है, तो लूट सके तो लूट ! नहीं तो फिर पीछे पछताना पडे़गा । तो लोग एकदम पीछे पड़ जाते हैं कि पकडो़ । मगर दो-चार दिन में फिर वे देखते हैं कि कुछ नहीं मिला, न कोई बाहर, न कुछ भीतर, चले उठाया डेरा --- कहीं और ! ये एक गुरु से दूसरे गुरु के पास घूमते रहते हैं । और ये गुरु हैं जो इनको बस वही आश्वासन, वही धोखे । 
यहां न कोई आश्वासन है, न कोई प्रलोभन है । मैं तुम्हें कोई वायदा नहीं करता कि तुम्हें कुछ मिलेगा । मिलने की बात ही गलत है । मिलने का मतलब ही होता है : भविष्य । और जिसके मन में भविष्य का अभी इतना आकर्षण है, वह ध्यान में नहीं उतर सकता । 
ध्यान का अर्थ होता है : वर्तमान में जीना । और सफलता का अर्थ होता है : भविष्य की आकांक्षा । इनका कोई तालमेल नहीं है । ये विपरीत हैं । ध्यान का अर्थ होता है : यह क्षण पर्याप्त है । इस क्षण में डूब जाना । न तो अतीत की कोई सत्ता है और न भविष्य की । अतीत जा चुका, भविष्य अभी आया नहीं; अगर है कुछ मौजूद तो यही क्षण है -- अभी और यहीं ! 
यहां तीन तरह के लोग बैठे हुए हैं । एक तो वे जो यहां बैठे हुए अतीत का हिसाब लगा रहे हैं, कि मैं जो कह रहा हूं इसका गीता से मेल खाता कि नहीं, कुरान से मेल खाता कि नहीं; यह बात समयसार के अनुकूल है या नहीं; कुंदकुंद, उमास्वाति और इनकी बातों में कुछ विरोध तो नहीं है । जीसस, जरथुस्त्र, उनकी बातों और इनकी बातों में कुछ विरोध तो नहीं है । वे कुछ बैठे हैं जो यही हिसाब लगा रहे हैं । वे चूक गए । वे इसी कचरे में पडे़ रहेंगे । वे अगर कृष्ण के समय में होते तो गीता पढ़ते वक्त हिसाब लगाते कि इसका वेद से मेल खाता कि नहीं । अगर वे वेद के समय में होते तो भी यही करते, क्योंकि तब वे और हिसाब लगाते आगे का कि और-और पीछे, जो हो चुके हैं ऋषि-मुनि, उनसे मेल खाता कि नहीं । उनका ढंग ही यह है कि हमेशा अतीत से मेल खानी चाहिए कोई बात, क्योंकि उनकी धारणाएं अतीत से बंधी हुई धारणाएं हैं । उनसे मेल खाएं तो ठीक । मतलब उन्हें सत्य की कोई चिंता नहीं है । 
तुम कहते हो कि मैं सत्य की खोज कर रहा हूं । सत्य वगैरह की तुम खोज नहीं कर रहे हो । तुम खोज इस बात की कर रहे हो कि तुम्हारी जो मान्यताएं हों, उनको कोई सत्य का सील-मुहर दे दे; हस्ताक्षर कर दे कि हां यह बिल्कुल सत्य है, कि .... तुम बिल्कुल ठीक कहते हो ! बस तुम्हारा दिल खुश हो जाए । अगर तुम यहां आए इस आशा में, तो बिल्कुल गलत जगह आ गए । यहां तो एक-एक बात तोड़ी जाएगी, व्यवस्था से तोड़ी जाएगी । एक-एक ईंट खिसकाई जाएगी ... । जब तक कि तुम्हें बिल्कुल सपाट न कर दिया जाए; जब तक कि बिल्कुल पूरा मैदान न हो जाए । क्योंकि मैं पहले मकान गिराता हूं, फिर ही नया बनाता हूं । रिनोवेशन में मेरा भरोसा ही नहीं है ...... । 
तो कुछ हैं जो अतीत में बैठे हैं । वे अतीत में ही अटके रहते हैं । वे वहीं हिसाब-किताब जमाए रहते हैं । और कुछ हैं जो भविष्य में हैं । वे हिसाब लगाए रखते हैं कि अगर हम इनकी बातें मानें तो लाभ क्या होगा, सफलता मिलेगी कि नहीं मिलेगी, फायदा क्या है, हानि क्या है ? हिसाब-किताब लगाते हैं । तराजू लिए बैठे हैं । कितना लाभ कितनी हानि । कहीं ज्यादा हानि तो नहीं है, ज्यादा लाभ तो नहीं है ? तराजू कहां जा रहा है, देखते रहते हैं । ये दोनों चूक जाते हैं । 
तीसरे तरह के लोग हैं, जो मौन शांत यहां बैठे हैं; जो इस क्षण का पूरा आनंद ले रहे हैं । न अतीत से कुछ लेना-देना है, न भविष्य से कुछ प्रयोजन है । ध्यान उनका अभी घट रहा है । ध्यान की उन्हें कोई विधि भी जरूरत नहीं है । ध्यान है वर्तमान में होने की कला । किसी भी बहाने वर्तमान में हो जाओ, ध्यान हो गया । सूर्योदय हो रहा हो और तुम सूर्योदय के साथ वर्तमान में हो जाओ ध्यान हो गया । रात तारों से भरी हो और तुम तारों से भरी रात के साथ एक हो जाओ, लीन हो जाओ - ध्यान हो गया । संगीत में डूब जाओ कि दूर कोयल की कूक उठती हो, उसके साथ तल्लीन हो जाओ ---- ध्यान हो गया । 
'ध्यान का कुल इतना ही अर्थ होता है कि तुम्हारा चित्त तरंगें खो दे अपनी, विचार खो दे अपने । विचार होते ही अतीत और भविष्य के हैं; वर्तमान का कोई विचार नहीं होता । वर्तमान निर्विचार है । और जहां निर्विचार की स्थिति होती है, वहां चैतन्य का जन्म हो जाता है, वहां चैतन्य प्रकट हो जाता है । विचार की धूल तुम्हारे चैतन्य को ढांके हुए है ।'
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💗 ओशो 
उड़ियो पंख पसार ~ तीसरा प्रवचन
संन्यास : जीवन का महारास से संकलित एक अंश ।
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