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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*अनिल पंखी आकाश को, माया मेरु उलंघ ।*
*दादू उलटे पंथ चढ, जाइ बिलंबे अंग ॥*
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साभार ~ Rashmi Achmare
कबीर के घर बहुत लोग रुकते थे और कबीर सबको कहते, खाना खा जाओ। और एक दिन बड़ी मुश्किल हो गई। कबीर के बेटे ने कहा, कब तक यह चलेगा? हम उधारी से दबे जाते हैं। तो कबीर ने कहा, उधारी लेते रहो । तो उसके बेटे ने कहा, चुकाएगा कौन?
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कबीर ने कहा, जो देता है वही चुका भी लेगा। हम क्यों फिकिर करें ! लेकिन बेटे की समझ में न आया। वह गणित और हिसाब-किताब का आदमी ! उसने कहा कि इन बातों से नहीं चलेगा, यह कोई अध्यात्म नहीं है। यहां जिनसे हम लेते हैं, वे मांगते हैं। और न देंगे तो चोर हो जाएंगे, बेईमान सिद्ध होंगे।
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तो कबीर ने कहा, सिद्ध हो जाना। इसमें हर्ज क्या है। और अगर लोगों ने हमें बेईमान कहा तो हमारा क्या बिगड़ जाएगा। लेकिन बेटे ने कहा कि यह हमारे बर्दाश्त के बाहर है। आप कृपा करके इतने उपद्रव में न डालकर, लोगों से खाना खाएं यहां यह आग्रह करना बंद कर दें। कबीर ने कहा, होगा तो हो जाएगा।
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लेकिन दूसरे दिन फिर लोग आए और कबीर ने कहा, खाना खाकर जाना, और लोगों ने खाया और उनके लड़के ने कहा कि वह नहीं हुआ। कबीर ने कहा कि मैं कोई वचन नहीं दे सकता, क्योंकि मैं कोई बंधन में नहीं पड़ सकता। हो जाएगा तो हो जाएगा। किसी दिन नहीं कहूंगा तो नहीं कहूंगा, और जब तक होता है, कहना निकलता है, तो कहता हूं।
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उस लड़के ने कहा, फिर अब ज्यादा नहीं चल सकती बात। अब तो मुझे चोरी ही करनी पड़ेगी, उधार भी देने को गांव में कोई तैयार नहीं है। तो कबीर ने कहा, पागल, यह पहले ही क्यों न सोचा, उधारी की झंझट से बच जाते। लेकिन बेटा बड़ी मुश्किल में पड़ गया क्योंकि कबीर, साधु, सदा अच्छी बात कहता, यह हो क्या गया है? लेकिन बेटे ने कहा परीक्षा कर लें, कहीं यह मजाक तो नहीं है।
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तो रात उसने कबीर को उठाया कि मैं चोरी को जाता हूं, आप भी साथ चलेंगे? कबीर ने कहा, जब उठा ही लिया है तो चला चलता हूं। बेटे ने सोचा, क्या सच में ही यह चोरी को राजी हो जाएंगे ! लेकिन बेटा भी कबीर का था। उसने कहा कि इतनी जल्दी लौट जाना ठीक नहीं, हो सकता है मजाक ही हो। वह गया, उसने जाकर दीवाल तोड़नी शुरू की, सेंध लगाई।
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कबीर किनारे खड़े हैं। उसने देखा कि अभी भी कुछ नहीं कहते कि अब बस रुक जाओ, मजाक बंद। लेकिन वह डर रहा है। कबीर उसे कहते हैं, डरते क्यों हो? वह कहता है, डरें न और ! और मजे की बात सुनिए वह कहता है कि, चोरी कर रहे हैं और डरें न !
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कबीर ने कहा, डरते हो इसलिए अपने को चोर समझ रहे हो। नहीं तो और कारण ही क्या है चोर समझने का? डरो मत, और ठीक से खुदाई करो, नहीं तो घर के लोग...नाहक नींद खराब हो जाएगी। तो बेटे ने किसी तरह तो खुदाई की। उसने सोचा कि शायद मजाक यहां खतम हो जाएगी।
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उसने कहा, अब भीतर चलें? कबीर ने कहा, चलो। वे भीतर गए। उन्होंने गेहूं का एक...कोई धन तो चुराना न था, भोजन की ही तकलीफ थी, तो एक गेहूं का बोरा खींचकर बाहर निकाला। जब बोरा बाहर निकल आया, कबीर ने कहा कि अब तो सुबह भी होने के करीब हो गई, नींद में कोई बाधा भी न पड़ेगी, घर के लोगों को जगाकर कह आओ कि हम एक बोरा चुराए लिए जाते हैं।
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तो उसके बेटे ने कहा, चोरी करने आए हैं कि कोई साहूकारी करने आए हैं। कबीर ने कहा, लेकिन घर के लोगों को परेशानी होगी कि कहां गया, क्या हुआ, ढूंढ़ने की मुसीबत होगी। कबीर की इस घटना को कबीर को मानने वाला छांट ही जाता है। क्योंकि यह तो बेबूझ हो गई बात।
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कबीर साधु हैं कि कबीर चोर हैं? तय करना मुश्किल है। चोर होने में कोई कमी नहीं है, चोरी की गई है। साधु होने में जरा शक नहीं, क्योंकि कहता है--डरता क्यों है? क्योंकि कहता है, जगाकर घर के लोगों को खबर कर दें, उनको परेशानी न हो, वे खोजें न कि कौन ले गया, नाहक मुसीबत में न पड़ें। लड़का कहता है, घर में खबर करूंगा जाकर तो वे चोर समझेंगे।
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कबीर कहता है, चोरी तो की है तो चोर हैं। इसमें वे समझेंगे तो वे गलत तो न समझेंगे। तो ठीक ही समझेंगे। तो वह लड़का कहता है, गांव भर में खबर फैल जाएगी कि तुम चोर हो। कौन आएगा तुम्हारे पास? तो कबीर ने कहा, तेरी मुसीबत मिटेगी; न कोई आएगा, न मैं खाने के लिए कहूंगा। मगर वह लड़के के समझ में नहीं आता, वह सारी बात उलटी होती चली जाती है।
💥🌹🙏💖ओशो 💖🙏🌹💥
कृष्ण-स्मृति--(प्रवचन--02)
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