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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१५. निगड बंध) =*
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(१)
*अधर लगै जिनि कहत बर्ण कहि कौंन आदि कौ ।*
*सब ही तें उतकृष्ट कहा कहिये अनादि कौ ॥*
*कौन बात सो आहि सकल संसार हि भावै ।*
*घटि बढ़ि फेरि न होइ नाम सो कहा कहावै ॥*
*कहि संत मिलें उपजै कहा दृढ़ करि गहिये कौन कहि ।*
*अब मनसा बाचा कर्मना “सुन्दर भजि परमानन्दहि” ॥२२॥*
जिस *परमानन्द* शब्द के प्रथम अक्षर के उच्चारण में ओष्ठ का सहयोग अत्यावश्यक होता है, वह सबसे उत्तम है, क्योंकि वह अनादि है । इस अनादि सुख में कौन विशिष्ट गुण विशिष्ट है कि यह सब को उत्तम लगता है ? इस शब्द में न कुछ बढता है न घटता है, फिर भी सबको प्रिय क्यों है ? सन्त पूछते हैं – यह कहाँ उत्पन्न होता है ? इसको दृढ़ता से कौन पकड़ता है ? कि महात्मा को कहना पड़ा कि परमानन्द का आस्वादन करो ॥२२॥
(क्रमशः)
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