#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= (१७. अथ प्रतिलोम अनुलोम) =*
.
*काठ माहिं का देत कहा प्रीतम कौं कीजै ।*
*पाव चढ़त सो कहा कहा धनुष हि संधीजै ॥*
*कापर ह्वे असवार बचन का प्रत्यक्ष कहावै ।*
*पान करै सो कहा कहा सुनि अति सुख पावै ॥*
*अब कहा दृढ़ावै जैनमत का बिरहनि उर लगि बकी ।*
*कहि सुन्दर प्रति अनुलोम “यह रस कथा दयालकी” ॥२५॥*
१.काष्ठ में क्या दिया जाता है ?
२.प्रियतम के लिए क्या किया जाता है ?
३.घोड़े पर किस पर पैर रख कर चढ़ा जाता है ?
४.धनुष् का संधान किससे होता है ?
५.सवारी किस पर की जाती है ?
६.कौन वचन ‘प्रत्यक्ष’ कहा जाता है ?
७.पान किसका किया जाता है ?
८.किसके श्रवण से अतिशय सुख मिलता है ?
९.जैनमत का अभ्यास दृढ़ता से क्यों किया जाता है ?
१०.विरहिणी छाती से लगाकर क्या बोलती है ?
महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – संसार के सभी वाक्य प्रतिलोम हैं ? इनका उत्तर दयाल जी महाराज की वाणी अनुलोम है ॥२५॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें