मंगलवार, 3 मार्च 2020

= १६० =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*कहूँ कथा कुछ कही न जाई,*
*इक तिल में ले सबै समाइ ॥*
*गुण हु गहीर धीर तन देही,*
*ऐसा समरथ सबै सुहाइ ॥*
*जिस दिशि देखूं ओही है रे,*
*आप रह्या गिरि तरुवर छाइ ॥*
*दादू रे आगै क्या होवै,*
*प्रीति पिया कर जोड़ लगाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ८९)*
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साभार ~ महन्त Ram Gopal तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *धैर्य*
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एक समय दुर्वासा ऋषि द्वारिका में जा करके धूमते हुये कहने लगे - "मुझे कौन आश्रय देगा, क्योकि मैं अल्प अपराध पर अति क्रोध करता हूँ ।" अन्य किसी ने भी उन्हे नहीं ठहराया । श्री कृष्ण भगवान् ने उन्हें ठहरने को कहा । दुर्वासा - मैं एक व्रत करूंगा, उसमें त्रुटी नहीं होने पावे।" श्री कृष्ण - "नहीं होगी ।" 
फिर वे भगवान के यहां ठहर गये । वे कभी तो सौ मनुष्यों जितना खा जाते थे और कभी उससे भी अधिक तथा कभी बहुत कम । कभी खूब हँसते थे और कभी रोने लगते थे । कभी घर में भी नहीं आते थे । एक दिन शय्या और कन्याओं को भी जला कर चल दिये । 
एक दिन बोले - खीर खाऊँगा, फिर कहा शरीर के लगा लो, फिर आपने रूकमणी जी के लगा दी । फिर श्री कृष्ण और रूकमणीजी को रथ में जोत कर चलने लगे । श्री कृष्ण के धैर्य को तोड़ने के लिये इत्यादि अनेक चरित्र किये किन्तु श्री कृष्ण भगवान् का धैर्य अडिग ही रहा, भगवान ने ऋषि को कुछ भी नहीं कहा । तब ऋषि प्रसन्न होकर चले गये । धैर्य के प्रभाव से ही दुर्वासा कुपित नहीं हो सके ।
तापस पर भी विजय हो, धीरज से सत जान ।
दुर्वासा को सहज में, जीत गये भगवान ॥२५८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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