मंगलवार, 3 मार्च 2020

*२. स्मरण का अंग ~ ७७/८०*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*पंडित श्री जगजीवनदास जी की अनभै वाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२. स्मरण का अंग ~ ७७/८०*
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अझूंठ कौड़ी५ नीझर झरै, अम्रित कुंड अकास६ ।
हरि सुमिरन तहां नित करै, जगजीवन पीव पास ॥८१॥
संत जगजीवन दास जी महाराज कहते हैं कि अनमोल राम नामी रत्न आकाश से झर रहे हैं । वहां पर अमृत कुंड है वहीं संत परमात्मा के सानिध्य में भजन करते हैं। (५. अझूंठ कौड़ी-अमूल्य रत्न)
(६. अकास-आकाशचक्र नामक सहस्रार चक्र)
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रांम रांमं श्रवनों सुनैं, हरि हरि रसनां लीन ।
अलख पुरिष उर मैं धरै, जगजीवन जन दीन ॥८२॥
संत कहते हैं कि राम राम तो कानों से सुनते रहें जिह्वा से हरि हरि जपते रहो । उस प्रभु का ध्यान हृदय में रखें, संत जगजीवन जी कहते हैं कि इसीलिए ईश्वर ने मानव शरीर दिया है।
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सांच सुमरनी सुरति सौं, बिन कर जपिये जाप ।
जगजीवन तहां एकरस, अंतरजामी आप ॥८३॥
संत कहते हैं कि सत्यरुपी माला को ध्यान में पिरोकर बिना हाथों ही जप(अजपा=अनहद) करें तभी ईश्वर से एकाकार हो सकेगा। और स्वयं प्रभु कृपा करेंगे ।
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मन माला मन सुमरणी७, मन मणियां मन सूत ।
जगजीवन मन मांहि मन, जपिये जाप अनूप ॥८४॥
संत कहते हैं कि मन ही माला है, मन ही जपमाला है, मन ही सूत है, मन ही मोती है, सब कुछ मन है मन के अन्दर ही मन है जो सबसे सुन्दर जाप के लिए प्रेरित करता है। (७. सुमरणी-माला)
(क्रमशः)

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