सोमवार, 23 मार्च 2020

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*दादू इस संसार सौं, निमष न कीजे नेह ।*
*जामण मरण आवटणा, छिन छिन दाझै देह ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *वैराग्य*
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संत बनादासजी भवहरकुंज अवध में रहते थे । रीवां नरेश श्री रधुराजसिंह जी उनके दर्शन करने गये और दस हजार की थैली भेंट की, किन्तु उसे नहीं लेते हुवे वे दोहा बोले -
जांचब, जाब, जमाति, जर, जोरू, जाति, जमीन ।
जतन आठ ये जहर सम, वनादास तज दीन ॥
याचना करना, जवाब देना, जमात बांधना, जर(धन) संग्रह करना, जोरू(नारी ) रखना, जमीन लेना और इन सब के लिये यत्न करना, ये आठ मैंने विष के समान जानकर त्याग दिये हैं ।
देने पर भी ले नहीं, त्यागी संत सुजान ।

ली नहीं थैली भूप की, वनादास मतिमान ॥१२८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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