गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

= *विश्वास संतोष का अंग ११२(४५/४८)* =

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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू सांई सबन को, सेवक ह्वै सुख देइ ।*
*अया मूढ मति जीव की, तो भी नाम न लेइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*विश्वास संतोष का अंग ११२*
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मात पिता माया ब्रह्म, बालक बंदा१ कंध ।
मोह मिहरी२ में ये सदा, सू विश्वास निर्संध३ ॥४५॥
नारी१ के पेट में बच्चा होता है, तब भी उसका पोषण होता है और जन्मने पर माता पिता बालक को कंधे पर रखकर पालते हैं, वैसे ही ये प्राणी मोह में रहते हैं तो भी इनका पालन होता है और ज्ञान होने पर तो भक्त२ ब्रह्म में मिल ही जाता है, इस प्रकार विश्वास रूप साधन निर्दोष३ है ।
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साधू सुखिया समय में, दुखी न होंहिं दुकाल ।
रज्जब जिनकी रामजी, सदा करै प्रतिपाल ॥४६॥
जिनकी रामजी सदा पालना करते हैं, वे संत सुकाल में सुखी रहते हैं और दुष्काल में दुखी नहीं होते ।
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रज्जब रहे विश्वास में, बांदी१ तहां विभूति२ ।
सदा सुखी सुमिरण करहिं, सब विधि आई सूति३ ॥४७॥
जिनका मन ईश्वर विश्वास में रहता है उनके यहां माया१ दासी२ होकर रहती है, वे हरि स्मरण करते हुये सदा सुखी रहते हैं, माया उनके सब प्रकार अनुकूलता३ से ही आती है ।
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राम काज निके करै, तिनके कारज सिद्ध ।
जन रज्जब विश्वास परि, बन आई सब विद्ध१ ॥४८॥
जिनके कार्य राम करते हैं उनके काम सिद्ध हो ही जाते हैं, राम विश्वास पर रहने सभी विधि१ ठीक बैठ जाती है ।
(क्रमशः)

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