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*कहे कहे का होत है, कहे न सीझै काम ।*
*कहे कहे का पाइये, जब लग हृदै न आवै राम ॥*
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*श्री रज्जबवाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*साँच चाणक का अंग १२१*
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बादल ज्यों वाईक१ मिले, गर्जि सु मारे गाल ।
रज्जब चमकै बीज बल२, बर्षा वित३ बिन काल ॥१७॥
बादल जब मिलते हैं तब गर्जना करते हैं और बिजली चमकती है, किन्तु वर्षा रूप धन३ बिना तो दुष्काल ही रहता है । वैसे ही वचन१ मिलते हैं, तब गालों पर आधात पहुँच कर आवाज होती है, तर्क शक्ति२ रूप बजली चमकती है किन्तु अर्थ धारण करे बिना तो काल का कष्ट रहता ही है ।
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अरिल ~
विक्त१ ज्योति ज्यों रैनी, अग्नि सी देखिये ।
त्यों करणी२ बिन काव्य, सु वीर३ विशेखिये४ ॥
देख्या सुन्या सु नांहि, दोउ घर शोध तैं ।
परिहां रज्जब उभय असत्य, सुण्या सत बोधतैं ॥१८॥
जुगनू१ की ज्योति रात्रि में अग्नि सी चमकती हुई देखी जाती है किन्तु उससे कोई कार्य नहीं होता, वैसे ही हे भाई३ ! कर्तव्य२ बिना के काव्य में देखने मात्र की ही विशेषता४ है, वह मुक्ति प्रद नहीं होता । काव्य के वक्त्ता और श्रोता दोनों के ही घर खोजने पर यथार्थ स्थायी ज्ञान न तो देखा है और न सुना है किन्तु दोनों ही असत्य व्यवहार में संलग्न रहते हैं, यह यथार्थ ज्ञान वाले ज्ञानियों से ही सुना है ।
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विक्त१ ज्योति कृत हीन कवि, दृष्टि देख सुन झूठ ।
रज्जब उभय असत्य है, रजू२ होहु भावे रूठ३ ॥१९॥
जुगनू१ की ज्योति दृष्टि में देखने पर भी कार्य की साधक न होने से मिथ्या ही सिद्ध होती है, वैसे ही कर्तव्य हीन कवि का काव्य, आत्म ज्ञान प्रद न होने से सफल नहीं होता, उक्त दोनों ही असत्य है, इस पर चाहे कोई प्रसन्न२ हो वा रुष्ट३ हो यह बात सत्य है ।
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रज्जब कथिये ज्ञान गृह१, सो सुन मरे न कोय ।
जैसे बादल बीजली, चमके विघ्न न होय ॥२०॥
बादल में बिजली चमकती है तब बादल को भय रूप विघ्न नहीं होता, वेसे ही घर१ में ज्ञान कथन करे तब उसे सुन कर कोई भी मन नहीं मरता ।
(क्रमशः)
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