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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
(श्री दादूवाणी ~ १३. साच का अंग)
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*एकै अक्षर प्रेम का, कोई पढेगा एक ।*
*दादू पुस्तक प्रेम बिन, केते पढ़ैं अनेक ॥१००॥*
*दादू पाती प्रेम की, बिरला बांचै कोइ ।*
*बेद पुरान पुस्तक पढै, प्रेम बिना क्या होइ ॥१०१॥*
*दादू कहतां कहतां दिन गये, सुनतां सुनतां जाइ ।*
*दादू ऐसा को नहीं, कहि सुनि राम समाइ ॥१०२॥*
विद्वान् वक्ता की आयु कहते कहते ही व्यतीत हो जाती है । सुनने वाले श्रोता भी सुनते सुनते मृत्यु के निकट पहुँच जाते हैं । वक्ता तथा श्रोताओं के मध्य में ऐसा कोई एक भी वक्ता और श्रोता नहीं कि कथा कहते ही तथा श्रोता कथा सुनते ही ब्रह्म में लीन हो गया हो ।
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*॥ मध्य निरपख ॥*
*मौन गहैं ते बावरे, बोलैं खरे अयान ।*
*सहजैं राते राम सौं, दादू सोई सयान ॥१०३॥*
बहुत से साधक मौन धारण करते हैं, परन्तु मन में दिन रात सांसारिक संकल्प विकल्प करते रहते हैं ऐसे मौन से कोई लाभ नहीं, ऐसा करने वाले अज्ञानी ही है । क्योंकि केवल मौन धारण करने से समाधि तो लगती नहीं । ऐसे ही बहुत से साधक ब्रह्म ज्ञान की चर्चा तो बहुत करते हैं लेकिन उनमें धारणा तो जरा भी नहीं रहती । ये दोनों प्रकार के साधक उत्पथगामी माने जाते हैं । ऐसे साधक मुक्त न होकर अन्त में पश्चात्ताप करते हैं । अतः जो स्वाभाविक मनोवृत्ति से भगवान् में अनुरक्त रहता है वह ही विज्ञ है ।
महाभारत में कहा है- यदि सद्वाक्य बोलने की इच्छा हो तो सूक्ष्मधर्म का विचार करते हुए सत्यवाणी बोलो जिससे किसी की आत्मा को क्लेश न हो । जो वाणी अपवाद रहित झूठ कपट से रहित हो । कठोर तथा नृशंस न हो । जिसमें किसी की चुगली न हो । ऐसी वाणी बोलो ।
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*॥ करुणा ॥*
*कहतां सुनतां दिन गये, ह्वै कछू न आवा ।*
*दादू हरि की भक्ति बिन, प्राणी पछतावा ॥१०४॥*
हे परमेश्वर ! संसार की बातों में ही मेरे दिन पूरे हो गये । कुछ फल हाथ नहीं लगा । अब आप ऐसी कृपा करें जिससे मेरे मन में गोविन्द की भक्ति पैदा हो जाय । अन्यथा प्राणान्त में पश्चाताप करना पड़ेगा । भक्ति से तो मेरा जीवन सफल हो जायगा । वेदान्तसंदर्भ में शिवकवचस्तोत्र में – जिसकी आयु क्षीण हो गई और मृत्यु समीप आ गई हो तथा महारोग से ग्रस्त क्यों न हो । यदि वह हरि भक्ति में लग जाता है तो तत्काल सुख प्राप्त हो जाता है और उसकी आयु भी दीर्घ हो जाती है ।
(क्रमशः)
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