शनिवार, 21 नवंबर 2020

= १८८ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*वैरी मारे मरि गये, चित तैं विसरे नांहि ।*
*दादू अजहूँ साल है, समझ देख मन मांहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ जीवित मृतक का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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एक समय सूर्यग्रहण के मेले पर कुरूक्षेत्र में मैंने एक दिन विरक्त संत को देखा था, जो केवल कमर में एक वस्त्र बांधे हुये थे और सिर पर एक ठीकरा धर रखा था । वे प्रत्येक व्यक्ति के पास जाकर कहते थे कि - हमारे समान त्यागी कौन होगा ? हम केवल एक वस्त्र और एक ठीकरा ही रखते हैं ।
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बाम्बार यही बात कहने पर लोग प्राय: उनकी हँसी करते थे । इससे सूचित होता है कि अपने मुख से अपने त्याग की बात कहने से उपहास ही होता है ।
निजी त्याग निज मुख कहे, होता नहिं उल्लास।
कुरुक्षैत्र में मैं लखा, अस त्यागी उपहास ॥१९५॥

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