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🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*जाके हिरदै जैसी होइगी, सो तैसी ले जाइ ।*
*दादू तू निर्दोष रह, नाम निरंतर गाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ सारग्राही का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु*, *संशय*
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चम्पकपुरी के राजा हंसध्वज ने पांडवों के अश्वमेध के घोडे को पकड़ लिया था । इस कारण अर्जुन आदि से युद्ध करना था । राजा की आज्ञा थी कि - "अमुक समय तक जो रणक्षेत्र में उपस्थित न होगा उसे तप्त तेल के कड़ाह में डाल दिया जायगा ।" राजा के छोटे पुत्र सुधन्वा को माता आदि से मिलने के कारण कुछ देर हो गयी । पुरोहित की संमति से सुधन्वा को उबलते हुये तेल के कड़ाह में डाला ।
भक्त होने से भगवान ने उनकी रक्षा की । किन्तु शंखमुनी को इस भगवत् रक्षा में संशय हुआ, उसने सोचा कि - "इसमें कोई चालाकी है । यदि तेल गरम होता तो सुधन्वा कैसे बच सकता था ।" परीक्षा के लिये एक नारियल कड़ाह में डाला । वह गरम तेल से तड़ाक से फूट कर दो टुकडे होकर उछले और शंख तथा लिखित के सिर में लगे ।
संशय ईश्वर कार्य में, किये भलाई नांहिं ।
शंख लिखित मुनि के लगी, चोट शीश के माँहिं ॥२८१॥
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