शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*काल कुहाड़ा हाथ ले, काटन लागा ढाइ ।*
*ऐसा यहु संसार है, डाल मूल ले जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ काल का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी 
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*#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु*, *फूट*
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क्षत्रिय वीर आमेर(जयपुर के पास) को चाहते थे किन्तु आमेर के शासक मीणे वीरता में कम न थे । क्षत्रिय ने फूट डालकर काम करना चाहा और आमेर के मीणों के एक ढोली को लोभ देकर उससे भेद ले लिया । ढोली बोला - "दीपमालिका के दिन मीणे शस्त्र रहित अमुक सरोवर में प्रवेश करके अमुक समय तर्पण करते हैं । यदि उसी समय आप लोग उन पर आक्रमण करें तो उनको जीत सकते हैं ।" 
क्षत्रियों ने वैसा ही किया । शस्त्र सहित मीणे मारे गये । ढोली बोला -" आपने जो मुझे बड़ा बनाने का वचन दिया था उसे पूर्ण करें।" क्षत्रियों ने उसके सिर पर सूखे चमड़े की पगड़ी बांध दी और उसे पानी में भिगो दिया । उसके सिर के टुकड़े टुकड़े होने लगे । 
फिर सब मीणों के शव एक स्थान में चुनकर सबके उपर उसे बिठा दिया और अग्नि लगा दी । फिर बोले - "देख, तुझको हमने तेरे सरदारों से भी बड़ा बना दिया है । तेरे जैसे काम करने वाले ऐसे ही बड़े बनाये जाते हैं ।" वह जल कर भस्म हो गया ।
भेदक का भी नाश हो, यह नहिं, मृषा विचार ।
मीणों का दे भेद सठ, ढोली मर कर छार ॥१७५॥

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