सोमवार, 19 अप्रैल 2021

विनती कौ अंग ३४ - ७४/७७

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज,व्याकरण वेदांताचार्य श्रीदादू द्वारा बगड़,झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज,बगड़ झुंझुनूं । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी ~ विनती कौ अंग ३४ - ७४/७७)*
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*तुम को हमसे बहुत हैं, हमको तुमसे नांहि ।*
*दादू को जनि परिहरै, तूँ रहु नैंनहुँ मांहि ॥७४॥*
हे प्रभो ! आपके तो मेरे जैसे अनेक भक्त हैं । लेकिन मेरे लिये आप जैसा दयालु स्वामी इस जगत् में एक भी नहीं हैं । अतः आप से प्रार्थना है कि मुझ दादू को आप त्यागें नहीं, किन्तु आप मेरे नेत्रों में ही आकर बस जावो । जिससे आपके दर्शन होते रहें ॥७४॥
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*तुम तैं तब ही होइ सब, दरश परश दर हाल ।*
*हम तैं कबहुं न होइगा, जे बीतहिं जुग काल ॥७५॥*
हे प्रभो ! आपकी यदि दया हो जाय और आप स्वयं चाहे तो उसी क्षण आपके दर्शन स्पर्शन आदि सभी कार्य पूरे हो जाय । किन्तु मैं तो पुरुषार्थ करके अनेक युगों में भी आपको नहीं देख सकता, कारण कि आपका दर्शन आपकी कृपा पर ही निर्भर है । अतः आप कृपा करके दर्शन दीजिये ॥७५॥
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*तुम्हीं तैं तुम को मिलैं, एक पलक में आइ ।*
*हम तैं कबहुँ न होइगा, कोटि कल्प जे जाइ ॥७६॥*
जब आप दर्शन देना चाहें तब यह जीव उसी क्षण आपकी दया से आपको जान कर आपको प्राप्त कर लेता है । किन्तु मेरे पुरुषार्थ से तो करोडों कल्प भी क्यों न व्यतीत हो जाय, तो भी आपके दर्शन दुर्लभ हैं । क्योंकि आप अपनी कृपासाध्य है । साधन साध्य नहीं हैं । अतः अब मेरे ऊपर आप कृपा कीजिये ॥७६॥
॥७६॥
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*॥ क्षण विछोह ॥*
*साहिब सौं मिल खेलते, होता प्रेम सनेह ।*
*दादू प्रेम सनेह बिन, खरी दुहेली देह ॥७७॥*
यदि मेरा मन भगवान् के प्रेम से पूर्ण होता है तो भगवान् भी हमारे से प्रेम करते तब भगवान् से मिलकर दर्शन के आनन्द का खेल उनके साथ खेलता है । अतः उनके दर्शन न होने से मेरी आत्मा दुःखी ही है ॥७७॥
(क्रमशः)

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