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*दादू सेवक सांई का भया, तब सेवक का सब कोइ ।*
*सेवक सांई को मिल्या, तब सांई सरीखा होइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
https://youtu.be/ZdtWyaGRe3M
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*गोप भक्त नन्दादिनव*
*पर्जन्य वृद्ध व्रज गोप के,*
*नव पुत्र नन्द को आदि दे ॥*
*सुठि सुनन्द अभिनन्द,*
*पुनः उपनन्द सु चातुर ।*
*धरानन्द ध्रुवनन्द,*
*धर्म सत-गुन के पातुर ॥*
*धर्मा कर्मानन्द,*
*कर्म काटन अभिनन्दन ।*
*गो-वत्सन के वृन्द,*
*गोपिका हरि रँग-रंगन ॥*
*कुल-मध्य कृष्ण जी अवतरे,*
*राघव नमत सुरादि दे ।*
*पर्जन्य वृद्ध व्रज गोप के,*
*नव पुत्र नन्द को आदि दे ॥१३३॥*
व्रज में १.सुजन्य २.पर्जन्य ३. अर्जन्य और ४.राजन्य, ये चारों गोप सहोदर भ्राता थे । उनमें गोकुल निवासी पर्जन्य के नन्दादि नव पुत्रों का परिचय दे रहे हैं –
१.नन्द, २.श्रेष्ठ सुनन्द, ३.अभिनन्द और ४ श्रेष्ठ तथा चतुर उपनन्द, ५.धरानन्द, ६.धर्म और सद्गुणों के पात्र ध्रुवानन्द, ७.धर्मानन्द, ८.कर्मों को काटने वाले कर्मानन्द, और ९.अभिनन्दन ।
ये नव, इनकी गायें और बछड़ों के झुंड तथा गोपिकायें सभी हरि के प्रेम रूप रंग में रंगे हुए थे । तभी तो इनके कुल में भगवान् श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था । भगवान् का अवतार होने से ही इनको देवादि सभी प्रणाम करते हैं ।
(क्रमशः)
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