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*दादू सब ही मृतक समान हैं, जीया तब ही जाण ।*
*दादू छांटा अमी का, को साधु बाहे आण ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नैन बिना द्विज द्वार परयो् शिव,*
*चाहत है दृग मास बदीते ।*
*नाथ कहै यह फेर न होवत,*
*जात नहीं मन मांहिं प्रतीते ॥*
*ले पृथ्वीराज अँगोछ छुवावहु,*
*आन कही द्विज सो भय भीते ।*
*नौतम लाय दियो तन के छुय,*
*आँख खुली द्विज ह्वै चित चीते ॥२०८॥*
एक समय एक अंधा अनाथ ब्राह्मण श्री वैद्यनाथ महादेवजी के द्वार पर नेत्र प्राप्ति के लिये जा पड़ा था । कई मास व्यतीत हो गये ....
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तब स्वप्न में शिवजी ने दो चार बार कहा – ये पुनः अच्छे नहीं होंगे किन्तु ब्राह्मण जाता नहीं था । उस के मन में दृढ़ विश्वास था कि भगवान् शंकर जी ठीक करेंगे तब ही जाऊंगा ।
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उसके दृढ़ विश्वास को देखकर शंकरजी प्रसन्न होकर बोले – जाओ आँमेर नरेश रामभक्त पृथ्वीराज के शरीर के पोंछने के अँगोछे को नेत्रों से छुआओ खुल जायेंगे । ब्राह्मण ने आकर पृथ्वीराज को कहा । पृथ्वीराज यह सोचकर डरे कि मेरे शरीर पोंछने का अंगोछा ब्राह्मण को कैसे दूं ।
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फिर नवीन वस्त्र मँगवाकर अपने अंग से छुआ के ब्राह्मण को दिया । ब्राह्मण ने उसको ज्योंही आँखों के छुआया त्योंही उसके नेत्र खुल गये । ब्राह्मण का मन चाहा हो गया । वह अति प्रसन्न हुआ तथा अन्य सब लोग भी पृथ्वीराज की भक्ति से अति प्रभावित हुये ।
(क्रमशः)
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