बुधवार, 9 मार्च 2022

साधना की आवश्यकता

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*ज्यूं अमली के चित अमल है, सूरे के संग्राम ।*
*निर्धन के चित धन बसै, यों दादू के राम ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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(२)साधना की आवश्यकता

घर के मालिक ने आकर प्रणाम किया । ये मारवाड़ी भक्त श्रीरामकृष्ण पर बड़ी भक्ति रखते हैं । पण्डितजी के लड़के बैठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण ने पूछा, क्या इस देश में पाणिनि व्याकरण पढ़ाया जाता है ?
मास्टर - जी पाणिनि ?
श्रीरामकृष्ण - हाँ, न्याय और वेदान्त, क्या यह सब पढ़ाया जाता है ?
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इन बातों का घर के मालिक मारवाड़ी ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
गृहस्वामी - महाराज, उपाय क्या है ?
श्रीरामकृष्ण - उनका नाम-गुण-कीर्तन और साधुसंग । उनसे व्याकुल होकर प्रार्थना करना ।
गृहस्वामी - महाराज, ऐसा आशीर्वाद दीजिये कि जिससे संसार से मन हटता जाय ।
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श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - कितना है ? आठ आने ? (हास्य ।)
गृहस्वामी - यह सब तो आप जानते ही हैं । महात्मा की दया के हुए बिना कुछ भी न होगा ।
श्रीरामकृष्ण – ईश्वर को सन्तुष्ट करोगे तो सभी सन्तुष्ट हो जायेंगे । महात्मा के हृदय में वे ही तो है ।
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गृहस्वामी - उन्हें पाने पर तो बात ही कुछ और है । उन्हें अगर कोई पा जाता है, तो सब कुछ छोड़ देता है । रुपया पाने पर आदमी पैसे का आनन्द छोड़ देता है ।
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श्रीरामकृष्ण - कुछ साधना की आवश्यकता होती है । साधना करते ही करते आनन्द मिलने लगता है । मिट्टी के बहुत नीचे अगर घड़े में धन रखा हुआ हो, और अगर कोई वह धन चाहे तो मेहनत के साथ उसे खोदते रहना चाहिए । सिर से पसीना टपकता है, परन्तु बहुत कुछ खोदने पर घड़े में जब कुदार लगकर ठनकार होती है, तब आनन्द भी खूब मिलता है । जितनी ही ठनकार होती है, उतना ही आनन्द बढ़ता है । राम को पुकारते जाओ, उनकी चिन्ता करो, वे ही सब कुछ ठीक कर देंगे ।
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गृहस्वामी - महाराज, आप राम हैं ।
श्रीरामकृष्ण - यह क्या, नदी की ही तरंगें हैं, तरंगों की नदी थोड़े ही है ?
गृहस्वामी - महात्माओं के ही भीतर राम हैं । राम को कोई देख तो पाता नहीं, और अब अवतार भी नहीं है ।
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श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - कैसे तुम्हें मालूम हुआ कि अवतार नहीं है ?
गृहस्वामी चुपचाप बैठे हुए हैं ।
श्रीरामकृष्ण - अवतारी पुरुष को सब लोग नहीं पहचान पाते । नारद जब श्रीरामचन्द्रजी के दर्शन करने के लिए गये, तब राम ने खड़े होकर नारद को साष्टांग प्रणाम किया और कहा, 'हम लोग संसारी जीव हैं, आप जैसे साधुओं के आये बिना हम लोग कैसे पवित्र होंगे !' फिर जब सत्यपालन के लिए वन गये, तब देखा, राम के वनवास का संवाद पाकर ऋषिगण आहार तक छोड़कर पड़े हुए थे । फिर भी उनमें से बहुतों को मालूम नहीं था कि राम अवतार हैं ।
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गृहस्वामी - आप भी वही राम हैं ।
श्रीरामकृष्ण – राम ! राम ! ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए ।
यह कहकर श्रीरामकृष्ण ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा "जो राम घट घट में विराजमान हैं, उन्हीं का बनाया यह संसार है । मैं तुम लोगों का दास हूँ । वही राम ये सब मनुष्य और जीव-जन्तु हुए हैं ।"
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गृहस्वामी - हम लोग यह क्या जानें ?
श्रीरामकृष्ण - तुम जानो या न जानो, तुम राम हो ।
गृहस्वामी - आप में राग-द्वेष नहीं हैं ।
श्रीरामकृष्ण – क्यों ? जिस गाड़ीवाले से कलकत्ते आने की बात हुई थी, वह तीन आने पैसे ले गया, फिर नहीं आया, उससे तो मैं खूब चिढ़ गया था । और था भी वह बड़ा बुरा आदमी । देखो न, कितनी तकलीफ दी ।
(क्रमशः)

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