गुरुवार, 5 जनवरी 2023

*हाइ हाइ हाइ हाइ हाइ*

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*दादू जिन प्राण पिण्ड हमकौ दिया,*
*अंतर सेवैं ताहि ।*
*जे आवै ओसाण सिर, सोई नांव संवाहि ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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हाइ हाइ हाइ हाइ हाइ हाइ हाइ हाइ१ ।
जनम अमोलिक जाइ जाइ जाइ जाइ ॥टेक॥
जनम पदार्थ पायौ रे ।
हरषि हरषि गुण गाइ गाइ गाइ गाइ२ ॥
तिल३ षिन रती निमष जिनि भूलै ।
गोब्यंद४ सूं ल्यौ लाइ लाइ लाइ५ ॥
दया करी दत दीयौ आप ।
टीला निसदिन ध्याइ ध्याइ ध्याइ ध्याइ६ ॥८॥
{पाठांतर : १. ‘हाइ’ आठ बार आवृत्त होने के स्थान पर छह बार आवृत्त हुआ है, २. ‘गाइ’ चार बार की जगह तीन बार आवृत्त हुआ है, ३. निस, ४. गोविन्द, ५. ‘लाइ’ चार बार के स्थान पर तीन बार ही आवृत्त हुआ है, ६. धाइ पाठ है ध्याइ के स्थान पर और वह भी चार बार के स्थान पर तीन बार आया है ।}
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हाय ! देवदुर्लभ अमूल्य मनुष्य जन्म बिना भगवद्भजन के व्यर्थ ही व्यतीत हुआ जा रहा है ॥टेक॥
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अरे भोले मनुष्य ! तूने मनुष्यजन्म रूपी अमूल्य पदार्थ पाया है । अतः खुशी-खुशी से परात्पर-परब्रह्म हरि के गुणों को गा ।
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तिल समान क्षण के किंचित् अंश समान समय में भी उस परमात्मा को मत भूल । गोविन्द में अपनी चित्तवृत्ति को सदा-सदा के लिए संयोजित कर ले ।
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उस परमात्मा ने अहैतुकी कृपा करके तुझको अमूल्य मनुष्य जन्म रूपी दान दिया है । अतः टीला कहता है,अहर्निश उस अहैतुक कृपालु परमात्मा का भजन = ध्यान-स्मरण कर ॥८॥
(क्रमशः)

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