बुधवार, 4 जनवरी 2023

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*दादू सींचे मूल के, सब सींच्या विस्तार ।*
*दादू सींचे मूल बिन, बाद गई बेगार ॥*
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साभार : @Subhash Jain
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माओत्से तुंग ने अपने बचपन की एक घटना लिखी है कि मेरी मां की झोपड़ी के पास एक बगिया थी। उसने जीवन भर उस बगिया को संभाला था। उसके फूल इतने बड़े और प्यारे होते थे कि दूर-दूर के गांव के लोग देखने आते थे। और बगिया के पास से गुजरता हुआ ऐसा कठोर आदमी कभी नहीं देखा गया जो दो क्षण ठहर न गया हो उन फूलों को देख कर मां बूढ़ी हो गई और बीमार पड़ गई।
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माओ छोटा था, पर उसने अपनी मां को कहा कि फिक्र मत करो-घर में और बड़ा तो कोई था नहीं—उसने कहा, फिक्र मत करो, तुम चिंता मत करो पौधों की, मैं उनकी फिक्र कर लूंगा। पंद्रह दिन बाद मां उठी। माओ दिन भर बगीचे में मेहनत करता रहता, दिन-रात, सुबह से लेकर आधी रात तक मां निश्चित थी। लेकिन जिस दिन पंद्रह दिन बाद उठकर वह बगीचे में आई तो देखा बगिया कुम्हला गई है। फूल तो जा चुके कभी के पत्ते भी मुर्दा हो गए हैं, सारे वृक्ष उदास खड़े हैं।
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ऐसा ही लगा होगा उस बुढ़िया को जैसा कि आज अगर किसी के पास आंखें हो, तो सारी मनुष्य की बगिया को देखकर लगेगा - सब फूल गिर गए, सब पत्ते कुम्हला गए, सब वृक्ष उदास खड़े हैं। वह तो छाती पीटकर रोने लगी कि यह तूने क्या किया और तू सुबह से साझ तक करता क्या था ?
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माओ भी रोने लगा। उसने कहा कि मैंने बहुत कुछ किया जो मैं कर सकता था। एक-एक फूल की धूल झाड़ता था, एक-एक पते की धूल झाड़ता था। एक-एक फूल को चूमता था, एक-एक फूल पर पानी छिड़कता था। पता नहीं लेकिन क्या हुआ ! इतना श्रम और सारे कुम्हला गए हैं। सारे वृक्ष कुम्हला गये।
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उसकी मां रोने में भी हंसने लगी। उसने कहा, पागल ! शायद तुझे पता नहीं कि वृक्षों के प्राण पत्तों और फूलों में नहीं होते। वृक्षों के प्राण जड़ों में होते हैं, जो दिखाई नहीं पड़तीं। तू फूल और पत्तों को पानी देगा, तू फूल और पत्तों को चूमेगा और प्रेम करेगा, तो सब निरर्थक है। फूल-पत्ते की फिक्र ही मत कर। अगर अदृश्य जड़ें शक्तिशाली होती चली जाती हैं, तो फूल-पत्ते अपने से निकल आते हैं, उनकी चिंता नहीं करनी पड़ती है।
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लेकिन आदमियों ने जीवन को समझा है बाहर का सारा का सारा फूल-पत्ते का जो फैलाव है वह, और भीतर की जड़ें बिलकुल उपेक्षित हैं, निग्लेक्टेड हैं। आदमी के भीतर की जड़ें बिलकुल ही उपेक्षित पड़ी हैं। स्मरण भी नहीं कि भीतर भी मैं कुछ हूं। और जो भी है वह भीतर है। 
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सत्य भीतर है, शक्ति भीतर है, जीवन की सारी क्षमता भीतर है। वहां से वह प्रकट हो सकती है बाहर। बाहर प्रकटीकरण होता है, होना भीतर है। *बीइंग भीतर है, बिकमिंग बाहर होती है।*

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