शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

*२८. काल कौ अंग ९/१२*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२८. काल कौ अंग ९/१२*
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अंत अकेला जाइगा, तजि सुख संपति भोग ।
जगजीवन तोबा टल्या३, बादि किया ए भोग ॥९॥
(३. तोबा टला=संकट दूर हुआ)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि, है जीव आंत समय तू सभी सुग संपत्ति छोड़कर अकेला ही प्रस्थान करेगा । जो इससे बच रहे है वै तो तोबा कर कहते हैं कि इन भोग विलास का उपयोग व्यर्थ है ।
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घर घोड़ा हाथी धणां, नित प्रति धुरै निसांण ।
(पुनि)पकड़ लिया जम देखताँ, (नर)तब कछु किया न पांण ॥१०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीव के गृह संग्रह में हाथी घोड़े बहुत हैं जो उसके ध्वज या पहचान को लेकर चलते हैं । किन्तु जब यम द्वारा जीव पकड़ा जाता है तो जीव किसी भी मर्यादा का वहन नहीं कर पाता है ।
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कटक४ जुड्या कुंजर५ बण्यां, छत्र चँवर धज ढाल ।
पुनि जगजीवन केता खप्या६, खसम बिना इंहिं ख्याल ॥११॥
(४. कटक=सेना) (५. कुंजर=हाथी) (६. खप्या=नष्ट हुए)
संतजगजीवन जी कहते हैं किसोने से मण्डित हाथी छत्र ध्वज, चंवर, ढाल से सुसज्जित कितने ही जीव बिना प्रभु के इन से अपने आपको सुरक्षित मिनते हुये किल कवलित होगये ।
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मैड़ी७ मंदिर८ मांलियां९, कहा किए ए कोट१० ।
जगजीवन जो जीविये, बचै न जम की चोट ॥१२॥
(७.मैड़ी=साधारण कुटिया) (८. मंदिर=उत्तम गृह) (९. मांलियां=महल । {१०. कोट=दुर्ग(=किला)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि कुटिया मंदिर हवेली और बड़े बड़े दुर्ग से भी जीव सुरक्षित नहीं है वहां भी यम की चोट तो लगती ही है ।
(क्रमशः)

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