शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

*चहुं साथ चलें हम हू न डरें हैं*

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*सिर ऊपर सांई खड़ा, सोई हम माहीं ।*
*दादू सेवक राम का निर्भय, न डराहीं ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. १८१)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*जावत हैं नृप पास रहो,*
*चहुं साथ चलें हम हू न डरें हैं।*
*लार भई गति लेत नई रस,*
*भीज गई वह नृत्य करें हैं ॥*
*वैसे हि आवत पंच छिपावत,*
*तौउ कहैं तिय क्यों रु धरें हैं।*
*भक्ति न जानत वेद बखानत,*
*नारि कहा शुकदेव बरें१ हैं ॥२९९॥*
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नरसीजी ने 'राजा बुलाता है', यह सुनकर जान लिया कि इन बाइयों को ही कारण बनाकर बुलाया होगा। तब आपने कहा—हम तो राजा के पास जाते हैं और तुम चारों कहीं चली जाओ, मुझे राजा का भय है। चारों ने कहा-हम राजा से नहीं डरती, चारों आपके साथ चलती हैं। राजा हमारा क्या कर सकता है ?
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हमारे रक्षक तो भगवान् श्रीकृष्ण हैं। फिर वे चारों भगवद्-यश गाते बजाते नाचते हुए प्रभु-प्रेम-रस में निमग्न होकर नरसी के साथ चलीं। इसी प्रकार चारों को साथ लिए नरसी सभा में पहुँचे।
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आपका भक्ति रूप तेज देखकर, उस सभा के पंच लोग अपना मुख लज्जा से छिपाने लगे अर्थात् प्रभाहीन होकर लज्जित से हो गये। तो भी उनने पूछा- "यह कौन सी रीति नीति है? किस ग्रंथ में लिखा है कि अपने साथ निरन्तर इस प्रकार स्त्रियाँ रखी जाय ?" नरसीजी ने उत्तर दिया- " आप सबको भक्ति का लेश मात्र भी ज्ञान नहीं है।
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यह तो वेद भी कहता है कि भक्ति का सभी को अधिकार है और जो भक्त होता है वह चाहे स्त्री हो या पुरुष हो उसका संग कभी भी त्याज्य नहीं होता, सर्वदा किया जाता है। देखिये श्रीमद्भागवत में परमहंस श्रीशुकदेवजी ने भी मथुरावासी ब्राह्मणों की स्त्रियों की कैसी प्रशंसा१ की है और उन ब्राह्मणों ने स्वयं अपनी भक्तिमती स्त्रियों की प्रशंसा करके अपने को धिक्कारा है।"
(क्रमशः)

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