गुरुवार, 5 जनवरी 2023

*श्री रज्जबवाणी पद ~ ९९*

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*साधु बरसैं राम रस, अमृत वाणी आइ ।*
*दादू दर्शन देखतां, त्रिविध ताप तन जाइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग टोडी । (गायन दिन ६ से १२)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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९९ साधु संग विशेषता । रुद्रताल
सब सुख की निधि आये साध, 
कर्म क्लेश कटे अपराध ॥टेक॥
दर्शन देख किये दंडौत, 
अध१ उतरैं अंकूर उदौत२ ॥१॥
प्रदक्षिणा देतां दुख दूरि, 
चरणोदक लेतां सुख पूरि ॥२॥
श्रवणों कथा सुनत सुख सार, 
साधु शब्द गहि उतरे पार ॥३॥
साँचे संत सजीवन मूरि, 
रज्जब तिन चरणन की धूरि ॥४॥१६॥
साधुओं के संग की विशेषता बता रहे हैं -
✦ संत सर्व सुखों की निधि रूप ही पधारे हैं । संतों के संग से कर्म, क्लेश और दोष नष्ट हो गये हैं ।
✦ दर्शन करके दंडवत करने से पाप१ नष्ट होकर पुण्य रूप अंकुर उदय२ हुआ है ।
✦ परिक्रमा देने से दु:ख दूर होते हैं चरण जल लेने से पूर्ण सुख होता है ।
✦ श्रवणों से कथा सुनने पर सार रूप सुख प्राप्त होता है ।
✦ संतों के शब्दों को ग्रहण करके अनेक प्राणी संसार सागर से पार उतर गये हैं ।
सच्चे संत संजीवन बूंटी रूप हैं, मैं उनके चरणों की रज हूँ ।
(क्रमशः)

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