गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

*च्यार भुजा पट बाहु दिखावत*

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*तब हंसा मन आनंद होइ,*
*वस्तु अगोचर लखै रे सोइ ।*
*जा को हरि लखावै आप,*
*ताहि न लिपैं पुन्य न पाप ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. ४०५)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*प्रेम हुवै कब हेम डरौ१ तन,*
*अंग खुलें कब हूँ बध जावै ।*
*और नई आसवाँ२ पिचकारनि,*
*लाल प्रिया युग भाव समावै ॥*
*ईश्वरता सु प्रमाण करो,*
*जगनाथ हु छेतर देखन आवै ।*
*च्यार भुजा पट बाहु दिखावत,*
*बात अनूपम ग्रंथ हु गावै ॥३१३॥*
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आपको कभी प्रेमावेश होता था तब आपका गौर शरीर तप्त स्वर्ण के पिंड१ के समान लाल हो जाता था। कभी प्रेम से संधियाँ खुल कर अंग फूल जाते थे।
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आपकी एक और ही प्रेम की नई रीति थी कि प्रेम के आंसू२ इस प्रकार चलते थे कि मानो श्रीलाल जी की तथा प्यारीजी की युगल पिचकारी छूटती हैं। इस प्रकार प्रेम भाव के समुद्र में आप डूबे रहते थे।
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यदि कहो कि मूल में इनकी ईश्वरता का कथन किया है, सो प्रमाणित करो, तो जगन्नाथ क्षेत्र का दर्शन करने आप आये तब वहाँ सब को एक समय प्रेम नृत्य करते-करते चतुर्भुज होकर आपने दर्शन दिया था।
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तब लोगों ने कहा-चतुर्भुज होना तो इस क्षेत्र का प्रभाव ही है। तदनन्तर आप ने षट् भुज होकर दर्शन दिया था। आपने जो हितोपदेश जीवों को दिया सो बड़ा अनुपम है। उसका गायन ग्रंथों में कवियों ने किया है।
(क्रमशः)

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