शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

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*दादू बहुरूपी मन जब लगै, तब लग माया रंग ।*
*जब मन लागा राम सौं, तब दादू एकै अंग ॥*
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*साभार : @Subhash Jain*
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*संसार माया नहीं, मन माया है*
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प्रश्‍न:
ओशो, संत कहते हैं कि संसार माया है, फिर भी इतने लोग क्‍यों संसार में ही उलझे रहते हैं ?
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रामपाल, संत लाख कहें संसार माया है, सौ में से निन्यानबे संत तो खुद ही माया में उलझे रहते हैं। लोग भी कुछ अंधे नहीं हैं। लोग भी देखते हैं कि महाराज हमें तो समझा रहे हैं कि संसार माया है और खुद ? खुद माया में ही जी रहे हैं। संसार माया है भी नहीं, संसार तो सत्य है। झूठी बात कहोगे, उसके परिणाम कैसे होंगे ? झूठी बात में कहीं सत्य की सुगंध उठ सकती है ? सदियों से संत दोहरा रहे हैं कि संसार माया है। दोहराते रहो।
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लोग भी दोहराना सीख गए हैं, वे भी दोहराते हैं कि संसार माया है। मगर यह दोहराने की बात एक, जीने की बात और; कहने की बात एक, होने की बात और। दिखाने के दांत और, खाने के दांत और। कैसे मानते हो कि संसार माया है ? संसार माया नहीं है, संसार वास्तविक है। वास्तविक परमात्मा से वास्तविक संसार ही पैदा हो सकता है। वास्तविक से अवास्तविक कैसे पैदा होगा, थोड़ा सोचो तो ! अगर ब्रह्म सत्य है तो जगत मिथ्या कैसे हो सकता है ?
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क्योंकि ब्रह्म का ही तो अवतरण है जगत, उसी की तो तरंगें हैं। उसी ने तो रूप धरा, उसी ने तो रंग लिया। वही निर्गुण तो सगुण बना। वही तो निराकार आकार में उतरा। उसने देह धरी। अगर परमात्मा ही असत्य हो तो संसार असत्य हो सकता है। लेकिन न परमात्मा असत्य है न संसार असत्य है; दोनों सत्य के दो पहलू हैं—एक दृश्य, एक अदृश्य। माया फिर क्या है ? मन माया है। मुझसे पूछो तो मैं संसार को माया नहीं कहता, मन को माया कहता हूं। मन है एक झूठ, क्योंकि मन है जाल— वासनाओं का, कामनाओं का, कल्पनाओं का, स्मृतियों का। मन माया है।
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काश, हमने लोगो को समझाया होता कि संसार माया नहीं, मन माया है, तो यह दुनिया आज कुछ और होती ! इस दुनिया का सौंदर्य कुछ और होता ! इस दुनिया का उल्लास कुछ और होता! इस दुनिया में धार्मिकता होती ! संसार माया है, तो लोग संसार को छोड़ कर भागने लगे। संसार को छोड़ कर कहां जाओगे ? जहां जाओगे वहीं संसार है।
ओशो
मन ही पूजा मन ही धूप

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