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*दादू बाहर का सब देखिये, भीतर लख्या न जाइ ।*
*बाहर दिखावा लोक का, भीतर राम दिखाइ ॥*
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*साभार : @Subhash Jain*
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🔴प्रश्न:
शादी से आनंद का क्या संबंध है ?
जो आनंदित रहना जानता है, वह शादी में भी आनंदित रहता है, शादी के बाद भी आनंदित रहता है। जो आनंदित रहना नहीं जानता, शादी से क्या लेना—देना ? शादी से आनंद का संबंध क्या है ? तुम कभी सोचो भी तो कैसी बचकानी आकांक्षा आदमी करता है। सात चक्कर लगा लिए, बैंड—बाजा बजा, मत्र उच्चार हुए, वेदी सजी, पूजा—पाठ हो गया, इससे आनंदित होने का क्या संबंध है ? आनंद से इसका कौन सा कीमिया, कौन सा रासायनिक संबंध जुड़ता है ? आनंदित होने का कोई भी तो तर्कगत संबंध नहीं है इन सब बातों से।
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लेकिन समाज ऐसा मानकर चलता है कि लोग विवाहित हो गए, बस, फिर आनंद से रहने लगे। ऐसा सिर्फ कहानियों में होता है। इसलिए कहानियां विवाह के आगे नहीं जातीं। राजकुमारी, राजकुमार, और बड़ा चलता है.. बड़ा झगड़ा—झांसा, शादी—विवाह। फिल्में भी वही खतम हो जाती हैं आकर—शहनाई बजने लगी, भावर पड गए, फिर राजकुमार—राजकुमारी आनंद से रहने लगे। कहानी वहा खतम होती है जहां असली उपद्रव शुरू होता है। उसके आगे कहानी कहना जरा शोभायुक्त नहीं है। उसके बाद बात चुप ही रखनी उचित है।
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विवाह से कोई आनंदित नहीं होता। आनंदित लोग विवाह करते हैं, वह बात अलग है। आनंदित लोग विवाह करें तो आनंदित होते हैं, विवाह न करें तो आनंदित होते हैं। आनंदित होना गुणधर्म है। आनंदित होना तुम्हारा जीवन—दृष्टिकोण है। आनंदित आदमी हर घड़ी में आनंद को खोज लेता है। जहां तुम्हें कुछ भी आनंद न दिखायी पड़ता हो, वहां भी खोज लेता है। अंधेरी से अंधेरी रात में भी वह अपने आनंद के छोटे—मोटे दीए को जला लेता है। अगर तुम दुखी हो, तो भरी दोपहरी भी तुम आंख बंद करके अंधेरे में हो जाते हो।
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आनंद का कोई संबंध बाहर की परिस्थितियों से नहीं है। विवाह बाहर की परिस्थिति है। सामाजिक व्यवस्था है। इससे तुम्हारे अनतस—चेतना का कोई लेना देना नहीं है।
- ओशो
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