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*दादू का परमोधै आन को, आपण बहिया जात ।*
*औरों को अमृत कहै, आपण ही विष खात ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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एक प्राचीन कथा है ~ जंगल की राह से एक जौहरी गुजरता था। देखा उसने राह में, एक कुम्हार अपने गधे के गले में एक बड़ा हीरा बांधकर चल रहा है। चकित हुआ ! पूछा कुम्हार से, कितने पैसे लेगा इस पत्थर के ? कुम्हार ने कहा, आठ आने मिल जाएं तो बहुत। लेकिन जौहरी को लोभ पकड़ा। उसने कहा, चार आने में दे दे, पत्थर है, करेगा भी क्या ?
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पर कुम्हार भी जिद बांधकर बैठ गया, छह आने से कम न हुआ तो जौहरी ने सोचा कि ठीक है, थोड़ी देर में अपने आप आकर बेच जाएगा। वह थोड़ा आगे बढ़ गया। लेकिन कुम्हार वापस न लौटा तो जौहरी लौटकर आया; लेकिन तब तक बाजी चूक गई थी, किसी और ने खरीद लिया था। तो पूछा उसने कि कितने में बेचा ? उस कुम्हार ने कहा कि हुजूर, एक रुपया मिला पूरा। आठ आने में बेच देता, छह आने में बेच देता, बड़ा नुकसान हो जाता।
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उस जौहरी की छाती पर कैसा सदमा लगा होगा ! उसने कहा, मूर्ख ! तू बिल्कुल गधा है। लाखों का हीरा एक रुपए में बेच दिया ? उस कुम्हार ने कहा, हुजूर मैं अगर गधा न होता तो लाखों के हीरे को गधे के गले में ही क्यों बांधता ? लेकिन आपके लिए क्या कहें ? आपको पता था कि लाखों का हीरा है और पत्थर की कीमत में भी लेने को राजी न हुए !
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धर्म का जिसे पता है, उसका जीवन अगर रूपांतरित न हो तो उस जौहरी की भांति गधा है। जिन्हें पता नहीं है, वे क्षमा के योग्य हैं; लेकिन जिन्हें पता है, उनको क्या कहें ?
🙏ओशो🙏

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