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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
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*दादू बिन पाइन का पंथ,*
*क्यों करि पहुँचै प्राण ।*
*विकट घाट औघट खरे,*
*मांहि शिखर असमान ॥*
*मन ताजी चेतन चढै,*
*ल्यौ की करै लगाम ।*
*शब्द गुरु का ताजणां,*
*कोइ पहुंचै साधु सुजाण ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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*पंछी उडै गगन में, खौज मंडै नाहिं मांहिं ।*
*दरिया जल में मीन गति, मारग दरसै नाहिं ॥*
अदभुत वचन दरिया दे रहे हैं। एक-एक सूत्र ऐसा है कि हीरे जवाहरातों में भी तौलौ तो भी तौले न जा सकें, अतुलनीय है।
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पंछी उड़ै गगन में... तुमने पक्षियों को आकाश में उड़ते देखा है, उनके पैरों के चिह्न नहीं बनते हैं। ऐसे ही ऋषियों की गति है। उनके पैरों के चिह्न नहीं बनते। परमात्मा के आकाश में जो उड़ रहे हैं, उनके पैरों के चिह्न कहां बनेंगे ? इसलिए तुम किसी के अनुगामी मत बनना। अनुगमन हो ही नहीं सकता। पद चिह्न ही नहीं बनते।
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पंछी उड़ै गगन में, खोज मंडै नाहिं माहिं | लेकिन आकाश में उसके कोई चिह्न नहीं पाए जाते। पक्षी उड़ जाता है, निशाना नहीं बनते। इसलिए कोई दूसरा पक्षी अगर उसका अनुगमन करना चाहे तो कैसे करे ?
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दरिया जल में मीन गति... । जैसे नदी में कि सागर में, मछली चलती है... मारग दरसै नाहिं |... कोई मार्ग नहीं बनता उसके चलने से। कोई दूसरा उसके मार्ग का अनुसरण करना चाहे तो कैसे करे ? परमात्मा के उस परम आकाश में भी, ध्यान के उस शून्याकाश में भी न कोई चिह्न बनते हैं, न कोई मार्ग ।
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पंछी उड़ै गगन में...दरिया जल में गीन गति...ऐसी ही गति है उस अंतर आकाश की। कहां कोई चिह्न कभी नहीं बनते। इसलिए वहां अनुगमन नहीं हो सकता है।
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तुम्हें अपना रास्ता स्वयं ही बनाना होगा। हिंदू होने से काम न चलेगा, मुसलमान होने से काम न चलेगा। ईसाई, जैन, बौद्ध होने से काम न चलेगा। क्योंकि इस बात का तो यह अर्थ हुआ कि मार्ग बना बनाया है, सिर्फ तुम्हें चलना है। जैन होने का क्या अर्थ है, कि मार्ग तो बना गए तीर्थंकर, अब हमारा कुल काम इतना है कि चलना है। वे तो हाईवे तैयार कर गए। अब तुम्हें कुछ और करने को बचा नहीं है । नहीं; मार्ग बनता ही नहीं सत्य का । सत्य का कोई मार्ग नहीं बनता ।
ओशो



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