मंगलवार, 3 अक्टूबर 2023

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
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*जिसकी सुरति जहाँ रहै, तिसका तहँ विश्राम ।*
*भावै माया मोह में, भावै आतम राम ॥*
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*साभार ~ @Krishna Krishna*
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*प्रेम पाठशाला है, परमात्मा की*
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जैसे कोई तैरना सीखने जाता है तो पहले उथले पानी में सीखता है। स्वभावतः गहरे पानी में सीखने जाओगे तो डूबोगे। गले—गले पानी में सीखता है। जब कुशल हो जाता है तो फिर गहरे में जाता है। फिर जितना कुशल हो जाता है उतना गहरे में जाता है।
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प्रेम परमात्मा का उथला रूप है। वहां सीखनी है प्रार्थना। वहां जिसने सीख ली, वह फिर गहरे में जाएगा। वह फिर मीरा के अगम गंभीर में, जिसकी फिर कोई सीमा नहीं, अनहद में, गहरे में उतर जाएगा। जिसकी कोई फिर सीमा ही नहीं, उसमें जाया जा सकता है; लेकिन सीमा में पाठ सीखना पड़ता है। असीम में जाने के लिए भी पाठ सीमा में सीखना पड़ता है।
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मैं तुम्हें याद दिला दूं। बार—बार कहता हूं: प्रेम पाठ है परमात्मा का। अगर तुम प्रेम में कुशल हो गए तो परमात्मा दूर नहीं। जितनी तुम्हारी कुशलता प्रेम में है उतना परमात्मा करीब आता है। मंदिर वही जो मन से मेल खाए। इसलिए तो प्रेम को मंदिर कहते हैं। 
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वह उधार तो हो ही नहीं सकता। वह तो अन्वेषण करना होता है, खोजना होता है, टटोलना होता है। जब तुम्हें अपने मन का मीत मिल जाए, वहीं झुक जाना। फिर वह मस्जिद हो,मंदिर हो,गुरुद्वारा हो, क्या हो,इसकी फिकर मत करना, क्योंकि सब परमात्मा का है।
ओशो
[ पद घुघरू बाँध ] (मीरा)

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