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*ज्ञान लहर जहाँ थैं उठै, वाणी का परकास ।*
*अनुभव जहाँ थैं उपजे, शब्दैं किया निवास ॥*
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*साभार ~@Subhash Jain*
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मैडम क्यूरी, जिसको नोबल प्राइज मिली, एक गणित को तीन वर्षों से हल कर रही थी और हल नहीं हो रहा था। सारी शक्ति लगा दी थी। इस सदी की सबसे बड़ी गणितज्ञों में से एक थी। सब ताकत लगा दी थी, लेकिन नहीं हल होता था तो नहीं हल होता था। थक गई थी। एक सांझ बिलकुल थक कर सो गई। सोचा अब कल से छोड़ ही देना है यह उपाय। यह नहीं होगा हल।
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तीन साल काफी होता है एक सवाल को हल करने के लिए। धैर्य की भी सीमा होती है। कोई पलटू तो थी नहीं कि कहती: काहे होत अधीर ! तीन साल में बहुत अधीर हो गई। कोई भी हो जाए। थकी-मांदी सो गई। और सुबह जब उठी तो बड़ी हैरान हुई–टेबल पर, जिस उत्तर की तलाश थी वह कागज पर लिखा हुआ रखा है ! दरवाजा तो ताला लगा दिया था उसने, कोई भीतर आया नहीं। और कोई भीतर आ भी जाता तो जो सवाल मैडम क्यूरी से हल नहीं होता, वह किसी और से हल हो सकता था ? नौकर-चाकर से ? चोर-चपाटी से ? फिर ताला लगा था, कोई भीतर आया भी नहीं। फिर उसने गौर से देखा, हस्ताक्षर उसी के हैं।
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तब उसे याद आया कि रात सपने में वह उठी थी। ऐसा उसे सपना आया था कि वह उठी है और उसने जाकर टेबल पर कुछ लिखा है और लिख कर सो गई। इतनी स्मृति उसे याद आई। धीरे-धीरे याद करने पर पूरी बात याद आ गई। वह उत्तर उसके भीतर से आया है। मस्तिष्क तो तीन साल में हार गया था; जब थक गया तो उत्तर भीतर से आया। किसी और आयाम से आया। यह हृदय का उत्तर था।
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विज्ञान के बड़े-बड़े आविष्कार बुद्धि से नहीं होते; यद्यपि बुद्धि दावेदार है, हृदय दावा नहीं करता। बुद्धि बहुत बेईमान है; जो हृदय से जन्मता है, उस पर भी कब्जा कर लेती है ! उसकी भी घोषणा दुनिया को कर देती है कि मैंने यह निर्माण किया !
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दुनिया का कोई श्रेष्ठ काव्य बुद्धि से पैदा नहीं होता, हृदय से पैदा होता है। फिर उपनिषद हो कि कुरान, ये सब हृदय के आविर्भाव हैं। ये वहां से आए हैं जहां विचार नहीं जा सकते, लेकिन प्रेम की जहां गति है। विचार तो एक थोथा और झूठा जीवन जीते हैं। विचार तो पाखंडी हैं। तर्क खूब बिठा लेते हैं। तर्क ऐसा कि बिलकुल ठीक लगता है, और फिर भी बिलकुल गलत होता है।
ओशो
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