सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

= ११० =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*देखा देखी सब चले, पार न पहुँच्या जाइ ।*
*दादू आसन पहल के, फिर फिर बैठे आइ ॥*
===============
*साभार ~ @Subhash Jain*
.
संसार की प्रत्येक वस्तु को पाने के लिए तो हम नहीं ऊबते, लेकिन पाकर ऊब जाते हैं। और परमात्मा की तरफ ठीक उलटा नियम लागू होता है। संसार की तरफ प्रयत्न करने में आदमी नहीं ऊबता, प्राप्ति में ऊबता है। परमात्मा की तरफ प्राप्ति में कभी नहीं ऊबता, लेकिन प्रयत्न में बहुत ऊबता है। ठीक उलटा नियम लागू होगा भी।
.
जैसे कि हम झील के किनारे खड़े हों, तो झील में हमारी तस्वीर बनती है, वह उलटी बनेगी। जैसे आप खड़े हैं, आपका सिर ऊपर है, झील में नीचे होगा। आपके पैर नीचे हैं, झील में पैर ऊपर होंगे। तस्वीर झील में उलटी बनेगी। संसार के किनारे हमारी तस्वीर उलटी बनती है। संसार में जो हमारा प्रोजेक्शन होता है, वह उलटा बनता है। 
.
इसलिए संसार में गति करने के जो नियम हैं, परमात्मा में गति करने के वे नियम बिलकुल नहीं हैं। ठीक उनसे उलटे नियम काम आते हैं। मगर यहीं बड़ी मुश्किल हो जाती है। संसार में तो ऊबना आता है बाद में, प्रयत्न में तो ऊब नहीं आती। इसलिए संसार में लोग गति करते चले जाते हैं। परमात्मा में प्रयत्न में ही ऊब आती है। और प्राप्ति तो आएगी बाद में, और प्रयत्न पहले ही उबा देगा, तो आप रुक जाएंगे।
.
कितने लोग नहीं हैं जो प्रभु की यात्रा शुरू करते हैं ! शुरू भर करते हैं, कभी पूरी नहीं कर पाते। कितनी बार आपने तय किया कि रोज प्रार्थना कर लेंगे! फिर कितनी बार छूट गया वह। कितनी बार तय किया कि स्मरण कर लेंगे प्रभु का घड़ीभर! एकाध दिन, दो दिन, काफी! फिर ऊब गए। फिर छूट गया। कितने संकल्प, कितने निर्णय, धूल होकर पड़े हैं आपके चारों तरफ !
.
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि ध्यान से कुछ हो सकेगा ? मैं उनको कहता हूं कि जरूर हो सकेगा। लेकिन कर सकोगे ? वे कहते हैं, बहुत कठिन तो नहीं है ? मैं कहता हूं, बहुत कठिन जरा भी नहीं। कठिनाई सिर्फ एक है, सातत्य ! ध्यान तो बहुत सरल है। लेकिन रोज कर सकोगे ? कितने दिन कर सकोगे ? तीन महीने, लोगों को कहता हूं कि सिर्फ तीन महीने सतत कर लो। मुश्किल से कभी कोई मिलता है, जो तीन महीने भी सतत कर पाता है। उब जाता है, दस-पांच दिन बाद ऊब जाता है !
.
बड़े आश्चर्य की बात है कि रोज अखबार पढ़कर नहीं ऊबता जिंदगी भर। रोज रेडियो सुनकर नहीं ऊबता जिंदगी भर। रोज फिल्म देखकर नहीं ऊबता जिंदगी भर। रोज वे ही बातें करके नहीं ऊबता जिंदगीभर। ध्यान करके क्यों ऊब जाता है ? आखिर ध्यान में ऐसी क्या कठिनाई है !
.
कठिनाई एक ही है कि संसार की यात्रा पर प्रयत्न नहीं उबाता, प्राप्ति उबाती है। और परमात्मा की यात्रा पर प्रयत्न उबाता है, प्राप्ति कभी नहीं उबाती। जो पा लेता है, वह तो फिर कभी नहीं ऊबता।
.
इसलिए बुद्ध को मिला ज्ञान, उसके बाद वे चालीस साल जिंदा थे। चालीस साल किसी आदमी ने एक बार उन्हें अपने ज्ञान से ऊबते हुए नहीं देखा। कोहनूर हीरा मिल जाता चालीस साल, तो ऊब जाते। संसार का राज्य मिल जाता, तो ऊब जाते।
.
महावीर भी चालीस साल जिंदा रहे ज्ञान के बाद, फिर किसी आदमी ने कभी उनके चेहरे पर ऊब की शिकन नहीं देखी। चालीस साल निरंतर उसी ज्ञान में रमे रहे, कभी ऊबे नहीं ! कभी चाहा नहीं कि अब कुछ और मिल जाए ! नहीं; परमात्मा की यात्रा पर प्राप्ति के बाद कोई ऊब नहीं है। लेकिन प्राप्ति तक पहुंचने के रास्ते पर अथक…। इसलिए कृष्ण कहते हैं, बिना ऊबे श्रम करना कर्तव्य है, करने योग्य है।
.
ओशो – गीता-दर्शन – भाग 3
दुखों में अचलायमान—(अध्याय-6) प्रवचन—ग्यारहवां

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें