मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

*३९. बिनती कौ अंग ८०/८४*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
.
*३९. बिनती कौ अंग ८१/८४*
.
जलनि७ उपाई ऊपजै, बुझै बुलाई जाइ ।
कहि जगजीवन रांमजी, तुम ही एक सहाइ ॥८१॥
{७. जलनि-जलन(दाह)} 
संतजगजीवन जी कहते हैं कि संसार में दुख का जिससे दाह उत्पन्न हो, का कारण तो हम स्वयं हैं । और उसे बुझाने या निवारण हेतु आपको बुलाते हैं । आप ही का सहारा है ।
.
जगजीवन औगुन किये, जीव मूढ मतिमंद ।
(तुम) बकसि लीजिये बापजी, गुणसागर गोबिंद ॥८२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि है प्रभु हमने बहुत अवगुण किये हैं  क्योंकि हम अज्ञानी हैं । आप तो प्रभु गुणों के सागर हैं हमारे सब अवगुण क्षमा करें ।
.
तुम निरगुण निरमल सदा, पावन पाक विदेह ।
कहि जगजीवन अब तुम्हारे, चरण कँवल की खेह ॥८३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आप निर्गुण सदा निर्मल पावन पवित्र है । हम तो आपके चरण कमलों की राख हैं ।
.
कहि जगजीवन भूल हरि, बुरा किया जे कांम ।
समरथ साहिब बकसिये, बेगि रमाड़ॏ रांम ॥८४॥  
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हमने भूलवश जो बुरा कार्य किया हो उसे क्षमा कर शीघ्र ही आप अपनी लीला में हमें भी रखें ।
(क्रमशः) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें