रविवार, 23 जून 2024

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*ज्यों यहु समझै त्यों कहो, यहु जीव अज्ञानी ।*
*जेती बाबा तैं कही, इन एक न मानी ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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मैंने सुना है एक बार ऐसा हुआ कि किसी पुराने जमाने के किसी अनजान देश का राजकुमार अचानक पागल हो गया। सम्राट बहुत निराश हो गया। राजकुमार ही उसका इकलौता पुत्र और राज्य का उत्तराधिकारी था। सभी जादूगर बुलाये गये। चमत्कार उत्पन्न करने वाला सभी हकीमों और वैद्यों को बुलाया गया।
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सभी संभव प्रयास किए गए लेकिन सभी कुछ व्यर्थ सिद्ध हुआ। कोई भी युवा राजकुमार की सहायता न कर सका और वह पागल ही बना रहा। एक दिन तो उसने बहुत उपद्रव किया। उसने अपने सभी कपड़े उतार कर फेंक दिए और नंगा हो गया और एक बड़ी मेज के नीचे रहना शुरू कर दिया। वह सोचता था कि वह एक मुर्गा बन गया है।
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अंत में सम्राट को यह तथ्य स्वीकार करना पड़ा कि राजकुमार स्थाई रूप से पागल हो गया है और वह अब ठीक नहीं हो सकता क्योंकि सभी विशेषज्ञ और चिकित्सक असफल हो चुके थे। लेकिन एक दिन फिर आशा की किरण दिखाई दी जब एक रहस्यदर्शी सूफी दरवेश ने महल का दरवाजा खटखटाते हुए कहा-- 'मुझे भी राजकुमार को ठीक करने का एक मौका दिया जाये।ʼ
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लेकिन सम्राट को संदेह हुआ क्योंकि वह फकीर खुद बहुत बड़ा पागल दिखाई दे रहा था, यहां तक कि राजकुमार से भी अधिक पागल। लेकिन सूफी फकीर ने दावे से कहा-- 'सिर्फ मैं ही उसे चंगा कर सकता हूं। एक पागल आदमी को ठीक करने के लिए एक बड़े पागल की जरूरत होती है। और तुम्हारे सभी चमत्कार उत्पन्न करने वाले औषधि विशेषज्ञ असफल हो चुके हैं क्योंकि वे पागलपन के बारे में 'कʼ 'खʼ 'गʼ भी नहीं जानते। वे कभी इस रास्ते से गुजरे ही नहीं।ʼ
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सम्राट को उसकी बात तर्क संगत लगी और उसने सोचा--इसमें नुकसान भी क्या है ? क्यों न इसे भी आजमा लिया जाये ? इसलिए उसे अवसर दिया गया। जिस क्षण सम्राट ने कहा--'ठीक है, तुम भी कोशिश करके देख लो,' उसी क्षण उस फकीर ने अपने भी कपड़े उतार कर फेंक दिए और उछलकर उसी मेज के नीचे बैठकर वह भी मुर्गे की तरह बांग देने लगा।
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उसे देख राजकुमार को संदेह हुआ और उसने पूछा-- 'तुम कौन हो ? और यहां क्या कर रहे हो ?ʼ
बूढ़े फकीर ने जवाब दिया-- 'मैं भी एक मुर्गा हूं पर तुमसे कहीं अधिक अनुभवी। तुम तो कुछ भी नहीं हो। तुम तो अभी एक नौसिखिए हो। अधिक से अधिक तुम तो बस सीख रहे हो।ʼ
राजकुमार ने कहा-- 'यदि तुम भी एक मुर्गे हो तो फिर ठीक है। लेकिन तुम तो एक आदमी जैसे दिखाई देते हो ?
बूढ़े फकीर ने जवाब दिया-- 'शक्ल सूरत पर मत जाओ। मेरे मूल तत्व और मेरी आत्मा को देखो। मैं भी तुम्हारी तरह एक मुर्गा हूं'।
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वे दोनों मित्र बन गए। उन्होंन एक-दूसरे से वायदे किए कि वे हमेशा साथ-साथ रहेंगे। इसी तरह कुछ दिन गुजर गये। एक दिन बूढ़े फकीर ने अचानक कपड़े पहनना शुरू कर दिया। पहले उसने कमीज पहनी। राजकुमार ने पूछा--'यह तुम क्या कर रहे हो ? क्या तुम पागल हो गये हो, जो एक मुर्गा होकर आदमियों के कपड़े पहन रहे हो' ?
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बूढ़े फकीर ने कहा-- 'मैं इन बेवकूफ आदमियों को धोखा देने के लिए ही एक कोशिश कर रहा हूं। और याद रखो मैं भले ही कपड़े पहिन लूं फिर भी कुछ बदलेगा नहीं। मेरा मुर्गापन ज्यों का त्यों रहेगा। कोई हमें बदल नहीं सकता। बस आदमियों जैसे कपड़े पहन कर क्या तुम सोचते हो कि मैं बदल गया हूं ?ʼ राजकुमार को उससे सहमत होना पड़ा। कुछ दिन गुजर जाने के बाद बूढ़े फकीर ने राजकुमार को भी कपड़े पहनने के लिए फुसलाया क्योंकि सर्दी आने वाली थी और कुछ सर्दी शुरू हो गई थी।
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तब एक दिन उसने महल से खाना लाने का आदेश दिया। राजकुमार यह सुनकर बहुत सजग होकर बोला-- 'अरे पापी ! तू क्या कर रहा है ? क्या तू भी इन आदमीयों की तरह खाना खाना चाहता है ? हम लोग मुर्गे हैं और हम लोगों को वही खाना चाहिए जो मुर्गे खाते हैं।ʼ
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बूढ़े फकीर ने कहा-- 'इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता। जहां तक मुर्गे होने का संबंध है, तुम कोई चीज खा सकते हो और हर चीज का मजा ले सकते हो। तुम आदमीयों की तरह रह भी सकते हो और अपने मुर्गापन के प्रति भी सच्चे बन रहे सकते हो।ʼ
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धीरे-धीरे बूढ़े फकीर ने राजकुमार को फुसलाते हुए मनुष्यों के संसार में वापस लाने में सफलता पाई। वह पूरी तरह सामान्य हो गया। ठीक ऐसा ही मामला तुम्हारे और मेरे बीच में है। यह हमेशा याद रखना तुम एक नव प्रवेशी हो। तुम अपने को उस मुर्गे की भांति समझते हो जिसके बांग देने से गांव में सवेरा होने की घोषणा होती है। अभी तुम केवल ओलम सीख रहे हो। कोई घोषणा कर कैसे सकते हो ?
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मैं इस क्षेत्र में अनुभवी हूं और केवल मैं ही तुम्हारी सहायता कर सकता हूं। सभी विशेषज्ञ भी तुम्हें बदल न सके। वे भी असफल हो गये। तुम जन्मों-जन्मों से खोज रहे थे, और जिसके लिए तुम न जाने कितने दरवाजे खटखटा चुके हो, पर कहीं से भी तुम्हें कोई सहायता तक नहीं मिली, केवल तभी तुम मेरे पास आये हो।
ओशो, संसार और मार्ग

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