सोमवार, 24 जून 2024

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*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
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*स्वर्ग नरक सुख दुख तजे, जीवन मरण नशाइ ।*
*दादू लोभी राम का, को आवै को जाइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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जो चंद्रमा की तरह विमल, शुद्ध, स्वच्छ और निर्मल है तथा जिसकी सभी जन्मों की तृष्णा नष्ट हो गई, उसे मैं बाह्मण कहता हूं। जिसकी वासना भस्मीभूत हो गई है, वह बाह्मण हो गया। 
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जो मानुषी बंधनों को छोड़, दिव्य बंधनों को भी छोड़ चुका है, वह है बाह्मण। उसने मनुष्य से ही बंधन नहीं छोड़ दिए है, उसने दिव्यता से भी बंधन छोड़ दिए हैं। सभी बंधनों से जो मुक्त है, उसे मै बाह्मण कहता हूं।
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जहां जन्म-मरण शांत हो जाते हैं। जिसने स्वर्ग-नर्क का सब रहस्य जान लिया, पूर्व जन्म क्षीण हो गया है। अब वह दुबारा नहीं आएगा। वह अनागामी हो गया। जिसकी प्रज्ञा पूर्ण हो चुकी है, उसे मै बाह्मण कहता हूं।
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बुद्ध ने बाह्मण की जो परिभाषा की, वही भगवत्ता की परिभाषा है। बुद्ध ने ब्राह्मण को जैसी ऊंचाई दी, वैसी किसी ने कभी नही दी थी। बाह्मणो ने भी नहीं। ब्राह्मण ने तो ब्राह्मण शब्द को बहुत क्षुद्र बना दिया। जन्म से जोड़ दिया। बुद्ध ने आत्म-अनुभव से जोड़ा। बुद्ध ने निर्वाण से जोड़ा।
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वह जो मुक्त है, वह जो शुन्य है, वह जो खो गया है बूंद की तरह और सागर हो गया है, उसे मै ब्राह्मण कहता हूं--ऐसा बुद्ध ने कहा।
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मैं तुमसे कहता हूं, ध्यान रखना सभी लोग शुद्र की तरह पैदा होते हैं और दुर्भाग्य से अधिक लोग शुद्र की तरह ही मरते हैं। ब्राह्मण की तरह कोई पैदा नहीं होता। क्योंकि ब्राह्मणत्व उपलब्ध करना होता है। ब्राह्मणत्व आर्जन करना होता है। ब्राह्मणत्व साधना का फल है।
ओशो; एस धम्मो सनंतनो

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