गुरुवार, 11 जुलाई 2024

= १६३ =

*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*सदा लीन आनन्द में, सहज रूप सब ठौर ।*
*दादू देखै एक को, दूजा नाहीं और ॥*
=============
*साभार ~ @Subhash Jain*
.
सिगमंड फ्रायड के संबंध में कहा जाता है, हजारों लोगों का मनोविश्लेषण करने के बाद वह ऐसी अवस्था में आ गया कि मरीज दरवाजे से भीतर प्रवेश करता था, और वह जान लेता कि उसकी अड़चन क्या है। क्योंकि तुम्हारे भीतर की चिंता तुम्हारी देह पर लिखी होती है, तुम्हारी आंखों से झलकती होती है। तुम्हारे चेहरे पर छाप होती है उसकी। तुम्हारा शरीर बोलता है। तुम्हारा शरीर मौन नहीं है, मुखर है।
.
जब भीतर शांति होती है तो चेहरे पर भी शांति होती है। जब भीतर शांति होती है तो आंखों में भी एक गहराई होती है। जब भीतर आनंद भरा होता है, तुम्हारे चलने में एक उत्साह होता है, एक उमंग होती है। जैसे फूल खिले! जैसे दीया जले! जैसे तुम्हारे जीवन में चारों तरफ उत्सव ही उत्सव है ! जब तुम्हारे भीतर उत्सव होता है तो तुम्हें बाहर भी उत्सव दिखाई पड़ता है।
.
जब तुम भीतर रंगरेली कर रहे होते हो तो सारा अस्तित्व रंगों से भर जाता है। अस्तित्व तो रंगों से भरा ही है, लेकिन चूंकि भीतर रंगरेली नहीं हो रही, भीतर की होली नहीं खेली जा रही, इसलिए बाहर के रंग तुम्हें दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। तुम बाहर वही देख पाओगे, जो तुम भीतर हो। बुद्ध देखते हैं तो काव्य है, बैठते हैं तो काव्य है, उठते हैं तो काव्य है, सोते हैं तो काव्य है।
.
आनंद बुद्ध के पास चालीस वर्षों तक रहा। उसी कमरे में सोया जिसमें बुद्ध सोते थे। एक दिन उसने बुद्ध से पूछा: आप मुझे चकित करते हैं ! आप सोते भी ऐसे हैं जैसे सजग हों। आपके सोने में भी आपके चौबीस घंटे का लय—छंद टूटता नहीं। आप सोते भी हैं तो ऐसे जैसे सम्हले हों, जैसे भीतर एक सावधानी हो। नींद में भी आपको मैंने हाथ—पैर पटकते नहीं देखा।
.
क्या होगा कारण ? जिसके भीतर चित्त में चिंताएं नहीं रहीं, वह नींद में भी हाथ—पैर क्यों पटकेगा ? नींद में भी तुम हाथ—पैर इसलिए पटकते हो कि दिन—भर हाथ—पैर पटक रहे हो। आपाधापी ! वही नींद में भी गूंजती चली जाती है। तुम्हारी नींद भी तुम्हारी नींद है न ! तुम अगर बेचैन हो, तुम्हारी नींद भी बेचैन होगी। तुम अगर उद्विग्न हो, तुम्हारी नींद भी उद्विग्न होगी। तुम परेशान हो, तुम्हारी नींद में भी परेशानी की छाया होगी।
.
तुम सपने भी दुखद देखोगे——कोई पटक रहा है पहाड़ से ! छाती पर पत्थर रखा है ! और हो सकता है तुम्हारा हाथ ही रखा हो अपनी छाती पर, मगर तुम्हें लगेगा पत्थर रखा है। क्योंकि पत्थर तुम्हारी छाती पर रखा है, तुमने ही रख लिया है। कि भूत—प्रेत तुम्हारी छाती पर कूद रहे हैं ! ये दुख—स्वप्न जो तुम देखते हो, ये दुख—स्वप्न आकस्मिक नहीं हैं। यह तुम्हारे दिन—भर की कमाई है। यह तुम्हारी पूंजी है। यही तुम्हारी जिंदगी है। ऐसे तुम जीते हो। उसकी ही छाया गूंजती रह जाती है। दिन—भर जो किया है, उसकी अनुगूंज रात—भर सुनी जाती है।
.
आनंद पूछने लगा बुद्ध से: क्या है राज इसका ?
बुद्ध ने कहा: जब से चित्त शांत हुआ, सपने आते नहीं।
समाधिस्थ व्यक्ति को सपने नहीं आते। सपने विचार से ग्रस्त मन को आते हैं। और तुम भी जानते हो, क्योंकि जब तुम्हारा मन बहुत विचार—ग्रस्त होता है तो तुम्हारी नींद बहुत सपनों से भर जाती है। अगर अत्यधिक विचार—ग्रस्त हो जाए, तो तो नींद समाप्त ही हो जाती है, तुम सो ही नहीं पाते। तुम तो करवटें ही लेते रहते हो।
.
जब तुम्हारी जिंदगी में रस बहता है, समझो तुम्हारे जीवन में किसी से प्रेम हो गया, तो तुम्हारे सपने तत्क्षण रूप बदल लेते हैं। उनमें एक माधुर्य आ जाता है, एक मिठास आ जाती है। कोई बांसुरी बजने लगती है। यह तो तुम्हारा भी अनुभव है। जब जीवन में सब ठीक चल रहा होता है, तुम्हारा सपना भी ठीक चलता होता है। जब जीवन में सब अस्त—व्यस्त होता है, तुम्हारी रात भी अस्त—व्यस्त हो जाती है। इससे तुम थोड़ा अनुमान लगा सकते हो बुद्धों की निद्रा का। उस निद्रा में तुम्हारा उपद्रव नहीं है। उस निद्रा में एक गहराई है, समाधि की ही गहराई है। उस सुषुप्ति में और समाधि में जरा भी भेद नहीं है।
.
तो बुद्ध की तो निद्रा भी जाग्रत है। तुम्हारा जागरण भी नींद से भरा है। तुम नाम—मात्र को जागे हो, बुद्ध नाम—मात्र को सोए हैं। इसको मैं कहता हूं संगीतबद्धता। और जब भीतर संगीतबद्धता शुरू हो जाती है तो तुम्हारे व्यक्तित्व में काव्य छा जाता है। यह भी हो सकता है, तुम गीत गाओ; बहुत संतों ने गाए हैं। अकारण नहीं है यह बात। 
.
मीरा नाची ! पद घुंघरू बांध मीरा नाची रे। चैतन्य मस्त होकर, मृदंग बजाकर नाचने लगे। आकस्मिक नहीं है यह बात। लेकिन जो नहीं भी नाचे, महावीर नहीं नाचे, लेकिन फिर भी अगर तुम महावीर के पास बैठोगे तो उनके आसपास की हवा का कण—कण नाचता हुआ पाओगे। बुद्ध नहीं नाचे, लेकिन नृत्य तो वहां है। वहां नहीं तो फिर कहां ? वहां नहीं तो फिर कहीं भी नहीं।
.
इसको मैंने काव्य कहा——अभिव्यक्ति। फिर कैसे होगी अभिव्यक्ति, अलग—अलग ढंग से होगी——कोई गीत लिखेगा, कोई इकतारा ले लेगा, कोई मूर्ति गढ़ेगा, कोई चित्र बनाएगा। कोई जुलाहा होगा कबीर जैसा तो कपड़े ही बुनेगा; लेकिन यह अब कपड़ा नहीं बुन रहा है, काव्य बुन रहा है। इसके कपड़े के बुनने में भी अब काव्य है। इसलिए तो वे कहते हैं: झीनी—झीनी बीनी रे चदरिया ! रामरस भीनी !
.
जब कबीर चादर बुनते थे तो ऐसे मस्त हो जाते थे, जैसे मीरा मस्त होती है नाचते क्षण में ! जरा—भी भेद नहीं, वही मस्ती ! क्योंकि राम खरीदने आएंगे इस चादर को। यह चादर राम के लिए ही बुनी जा रही है। क्योंकि कबीर के लिए अब राम के अतिरिक्त और कोई है ही नहीं——अब राम ही राम हैं। कबीर जब बेचते थे काशी में जाकर अपनी चादरों को, तो जो भी ग्राहक आता उसी से कहते कि राम, ले जाओ, तुम्हारे लिए ही बुनी है। “राम’ ही शब्द का उपयोग करते। और बहुत जतन से बुनी है। और ऐसी बुनी है कि जिंदगी—भर साथ देगी।
.
गोरा कुम्हार मटकियां बनाता था सो बनाता ही रहा, पर भेद हो गया, जमीन—आसमान का भेद हो गया ! अब भी मिट्टी कूटता है, अब भी चाक पर घड़े बनाता है, मगर अब इसमें एक छंद है। इसके हाथ में एक जादू है। ये घड़े जादुई हो गए ! इन घड़ों में आकाश उतर आया ! ये घड़े साधारण न रहे। जैसे पारस ने छू लिया लोहे को और सोना हो जाए, ऐसा गोरा कुम्हार ने छू दी जो मिट्टी, वही सोना हो गई !
.
मैं जब कहता हूं काव्य है, तो मेरा अर्थ ऐसा नहीं कि तुम कविता ही रचना। लेकिन तुम्हारी जिंदगी काव्य हो जाएगी, तुम्हारा आचरण काव्य हो जाएगा। और जिस चीज से भी काव्य में बाधा पड़ेगी, वही तुम्हारे आचरण से गिर जाएगी। जैसे क्रोध गिर जाएगा, क्योंकि क्रोध का काव्य नहीं बन सकता ! करुणा घनी हो जाएगी, क्योंकि करुणा का ही काव्य बन सकता है। जैसे कामवासना धीरे—धीरे तिरोहित हो जाएगी, क्योंकि कामवासना कितना ही चेष्टा करो, काव्य नहीं बन सकती। काम की जगह प्रेम का जन्म होगा; प्रेम का काव्य बन सकता है। और फिर प्रेम में भक्ति की ऊंचाइयां उठेंगी ! भक्ति महाकाव्य है !
ओशो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें