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*दादू दत्त दरबार का, को साधु बांटै आइ ।*
*तहाँ राम रस पाइये, जहँ साधु तहँ जाइ ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(२)श्रीरामकृष्ण का भक्तों के प्रति स्नेह*
गिरीश, लाटू और मास्टर ने ऊपर जाकर देखा, श्रीरामकृष्ण छोटे तखत पर बैठे हुए हैं । शशि और दो-एक भक्त उसी कमरे में श्रीरामकृष्ण की सेवा के लिए थे । क्रमशः बाबूराम, निरंजन और राखाल भी आ गये ।
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कमरा बड़ा है । श्रीरामकृष्ण की शय्या के पास औषधि तथा अन्य आवश्यक वस्तुएँ रखी हुई हैं । कमरे के उत्तर की ओर एक दरवाजा है, जीने से चढ़कर उस कमरे में प्रवेश किया जाता है । उस द्वार के सामनेवाले कमरे के दक्षिण की ओर एक और द्वार है । इस द्वार से दक्षिण की छोटी छत पर चढ़ सकते हैं । छत पर खड़े होने पर बगीचे के पेड़-पौधे, चाँदनी और पास का राजपथ भी दीख पड़ता है ।
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भक्तों को रात में जागना पड़ता है । वे बारी बारी से जागते हैं । मसहरी लगाकर, श्रीरामकृष्ण को शयन कराने के पश्चात् जो भक्त कमरे में रहते हैं, वे कमरे के पूर्व की ओर चटाई बिछाकर कभी बैठे रहते हैं और कभी लेटे । अस्वस्थता के कारण श्रीरामकृष्ण की आँख नहीं लगती । इसलिए जो रहते हैं, उन्हें कई घण्टे जागते ही रहना पड़ता है ।
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आज श्रीरामकृष्ण की बीमारी कुछ कम है । भक्तों ने आकर भूमिष्ठ हो प्रणा किया, फिर सब के सब जमीन पर श्रीरामकृष्ण के सामने बैठ गये ।
श्रीरामकृष्ण ने मास्टर से दीपक जरा नजदीक ले आने के लिए कहा ।
श्रीरामकृष्ण गिरीश से आनन्दपूर्वक बातचीत कर रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - (गिरीश से) - कहो, अच्छे हो न ? (लाटू से) इन्हें तम्बाकू पिला और पान दे ।
कुछ क्षण के बाद बोले, 'इन्हें कुछ मिठाई दे ।'
लाटू - पान दे दिया है । दूकान से मिठाई लेने के लिए आदमी भेजा है ।
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श्रीरामकृष्ण बैठे हैं । एक भक्त ने कई मालाएँ लाकर श्रीरामकृष्ण को अर्पण कर दीं । श्रीरामकृष्ण ने मालाओं को लेकर गले में धारण कर लिया । फिर उनमें से दो मालाएँ निकालकर गिरीश को दे दीं ।
बीच-बीच में जलपान की मिठाई के सम्बन्ध में श्रीरामकृष्ण पूछ रहे हैं - 'क्या मिठाई आयी ?'
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मणि श्रीरामकृष्ण को पंखा झल रहे हैं । श्रीरामकृष्ण के पास किसी भक्त का दिया हुआ चन्दन की लकड़ी का एक पंखा था । श्रीरामकृष्ण ने उसे मणि के हाथ में दिया । उसी पंखे को लेकर मणि हवा कर रहे हैं । गले से दो मालाएँ निकालकर श्रीरामकृष्ण ने मणि को भी दी ।
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लाटू श्रीरामकृष्ण से एक भक्त की बात कह रहे हैं । उनका एक सात-आठ साल का लड़का आज डेढ़ साल हुए गुजर गया है । उस लड़के ने भक्तों के बीच में श्रीरामकृष्ण को कई बार देखा था ।
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लाटू - (श्रीरामकृष्ण से) - ये अपने लड़के की पुस्तक देखकर कल रात को बहुत रोये थे । इनकी स्त्री भी बच्चे के शोक से पागल-सी हो गयी है । अपने दूसरे बच्चों को मारती है और उठाकर पटक देती है । ये कभी कभी यहाँ रहते हैं, इसलिए बड़ा हल्ला मचाती है ।
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श्रीरामकृष्ण उस शोक-समाचार को सुनकर मानो चिन्तित हो चुप हो रहे ।
गिरीश - अर्जुन ने इतनी गीता पढ़ी परन्तु वे भी पुत्र के शोक से मूर्च्छित हो गये, तो इनके शोक के लिए आश्चर्य प्रकट करने की कोई बात नहीं ।
(क्रमशः)
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