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*खंड खंड प्रकाश है, जहाँ तहाँ भरपूर ।*
*दादू कर्त्ता कर रह्या, अनहद बाजै तूर ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नैन खुले रवि ऊगत अंबुज,*
*देख स्वरूप हि चाह भई है ।*
*वंशि सुनी रस मिष्ट स्वरै मद,*
*कान भस्यो मुख भास१ लई है ।*
*जान प्रताप चिंतामणि को मन,*
*जैति चिंतामणि आदि दिई है ।*
*ग्रन्थ कस्यो करुणामृत पंथ,*
*जुग्गल२ कह्यो रस राशि मई है ॥४१७॥*
विहारीजी ने आकर जब मुरली बजाई तब उसकी मधुर तान सुन कर आप जान गये कि यह मुरली तो विहारीलालजी के मुख की ही है । इससे मन में विहारीजी के दर्शन की अभिलाषा हुई । तब जैसे सूर्योदय से कमल खिल जाते हैं, वैसे ही आपके नेत्र खुल गये । सामने शोभा-सिन्धु भगवान् का दर्शन कर के परमानन्द प्राप्त हुआ और यह दर्शन सदा ही करता रहूँ यह इच्छा हृदय में उत्पन्न हो गई ।
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वंशी का वह मधुर स्वर सुन कर आनन्द में निमग्न हो गये । वह श्रवणामृत रस इनके कानों में भर कर हृदय में पहुँचा तब वह यह मतवाले हो गये । वह मुरली ध्वनि सदा हृदय में बनी ही रही ।
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भगवान् के मुख चन्द्र का प्रकाश१ जो आपको प्राप्त हुआ अर्थात् देखा, उसका तो कथन हो ही नहीं सकता । यह सब चिन्तामणि के उपदेश का प्रताप अपने मन में जान कर तथा उसे गुरु मान कर आपने अपने ग्रन्थ " श्रीकृष्ण करुणामृत" के आदि में "जयति चिन्तामणि" पद दिया है ।
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"श्रीकृष्ण करुणामृत" की आपने रचना की है । उसमें श्रीराधाकृष्ण की प्राप्ति का ही मार्ग कहा है । यह ग्रन्थ प्रभु-प्रेम-रस की तो मानो राशि ही है ।
(क्रमशः)
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