शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

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*सतगुरु संगति नीपजै, साहिब सींचनहार ।*
*प्राण वृक्ष पीवै सदा, दादू फलै अपार ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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ज्ञान आध्यात्मिक स्वास्थ्य है। मन अध्यात्मतमिक रोग है और ध्यान एक औषधि है। बुद्ध ने कहा है : मैं वैद्य हूं, चिकित्सक हूं। मैं तुम्हें कोई सिध्दांत सिखाने नहीं आया हूं। मैं कुछ औषधि जानता हूं जो तुम्हारे रोगों का इलाज कर सकती है । औषधि लो, रोगों को मिटाओ : और तुम्हें स्वास्थ्य उपलब्ध हो जाएगा।
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स्वास्थ्य के संबंध में पूछो मत। बुद्ध कहते है : मैं दार्शनिक नहीं हूं; मैं सैद्धांतिक नहीं हूं। मेरी रूचि इसमें नहीं है कि ईश्वर क्या है; कैवल्य, मोक्ष और निर्वाण क्या है। मुझे जरा भी रूचि नहीं है। मैं तो सिर्फ इसमें उत्सुक हूं कि रोग क्या है और उसका उपचार क्या है। मैं वैद्य हूं।
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बुद्ध की दृष्टि बिलकुल वैज्ञानिक है। उन्होंने मनुष्य की समस्या का, उसकी बीमारी का ठीक निदान किया। उनकी दृष्टि सर्वथा सम्यक है। अवरोधों को मिटाओ। अवरोध क्या हैं ? विचार बुनियादी अवरोध हैं। जब तुम विचार करते हो तो विचारों का एक अवरोध निर्मित हो जाता है। तब सत्य और तुम्हारे बीच विचारों की एक दीवार खड़ी हो जाती है।
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विचारों की दीवार पत्थर की दीवार से भी ज्यादा ठोस और सख्त होती है। और फिर विचारों की अनेक पर्तें होती हैं और उनके भीतर प्रवेश करके सत्य को देखना मुश्किल है। तुम सोच -विचार करते रहते हो कि यथार्थ क्या है, तुम कल्पना करते रहते हो कि सत्य क्या है। और सत्य यहां और अभी मौजूद है और तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है। अगर तुम उसके प्रति उन्मुख हो जाओ तो सत्य तुम्हें उपलब्ध हो जाएगा।
~ ओशो

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