गुरुवार, 26 सितंबर 2024

*दत्तात्रेय मत धारि उर*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*जे जन राते राम सौं, तिनकी मैं बलि जांव ।*
*दादू उन पर वारणे, जे लाग रहे हरि नांव ॥*
.
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
========
*अथ षट्-दर्शन वर्णन*
*१. संन्यासी दर्शन*
*छप्पय-*
*दत्तात्रेय मत धारि उर, शंकराचार्य अति दिपे१ ॥*
*तिन के शिष हैं च्यार, स्वरूपा पद्माचारय२ ।*
*निरा३ तोटका सुमरि, गाय भुविधर४ आचारय ॥*
*इनतै हैं दश नाम, तीर्थ आश्रम वन आरन ।*
*सागर पावत गिरी, सरस्वती भारति कारन ॥*
*पुरी यती अरु ज्योति गुण, जन राघव कतहुँ न छिपे ।*
*दत्तात्रेय मत धारि उर, शंकराचारय अति दिपे ॥२९८॥*
.
दत्तात्रेय के मत को धारण करके शंकराचार्यजी अत्यन्त ही प्रकाशित१ हुए थे ।
शंकराचार्यजी के चार शिष्य हुये हैं-१. स्वरूपाचार्यजी २. पद्मापादाचार्यजी२ ३. शुद्धस्वरूप३ तोटकाचार्यजी एवं ४. पृथ्वीधराचार्यजी४ । इन शंकराचार्यजी के चार शिष्यों से ये दश नाम चले हैं-१. तीर्थ, २. आश्रम, ३. वन, ४. आरण्य, ५. सागर, ६. पर्वत, ७. गिरि, ८. सरस्वती, ९. भारती एवं १०. पुरी- ये दश प्रकार के यति अपनी ज्ञानज्योति और शुभ गुणों से सब विश्व में प्रकट हुए हैं ।
.
राघवदासजी कहते हैं- ये कहीं भी छिप नहीं सके हैं और लोक कल्याण के कारण हुये हैं । शंकराचार्यजी के चार मुख्य शिष्यों में- १. पद्मपादाचार्य गोवर्धनमठ पुरी के अधिपति, २. सुरेश्वाराचार्य श्रृंगेरी मठ के अधिपति, ३. हस्तामलकाचार्य द्वारिकामठ के अधिपति, ४. तोटकाचार्य ज्योर्तिमठ के अधिपति । छप्पय में स्वरूपाचार्य और भुविधराचार्य (पृथ्वी धराचार्य) नाम आये हैं सो संभव है हस्तामलक और सुरेश्वाचार्य के ही दूसरे नाम हों ॥२९८॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें