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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*को साधु जन उस देश का,*
*आया इहि संसार ।*
*दादू उसको पूछिये,*
*प्रीतम के समाचार ॥*
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*गुरु महिमा ॥*
आया था यक आया था । खबरि उहाँ की ल्याया था ॥टेक॥
आदि अंति की जाणैं था । पूरण ब्रह्म बषाणैं था ॥
बूझ्याँ थैं सब कहता था । धोखा कछू न रहता था ॥
हरि का सेवग आदू था । नाँउ उन्हौं का दादू था ॥
कौ असा आया सूझेगा । तौ बषनां ताकूँ बूझैगा ॥२०॥
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इस पृथिवी पर एक महापुरुष अवतरित हुआ था । हाँ, अवतरित हुआ था । वह उस परब्रह्म-परमात्मा का संदेशा = जानकारी लाया था, जिस परमात्मा की जिज्ञासा सभी करते हैं । “अथातो ब्रह्म जिज्ञासा” ब्रह्मसूत्र ॥१॥
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वह उस पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के बारे में आदि से अन्त तक सभी ज्ञातव्य बाते जानता था और उनका वर्णन करता था ।
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हाँ, पूछने पर ही कहता था, बिना पूछने पर नहीं(स्वामी रामचरणजी ने भी कहा है, “बूझ्याँ सूँ चरचा करै, छांड्या बाद बिबाद । पक्खपात सूँ णा बँधै, सो कहिये निज साध ॥”) उसका व्याख्यान सुनने के उपरान्त तनिक सा भी धोखा = भ्रम नहीं रहने देता था ।
(भ्रम दो प्रकार का होता है अभानापादक और असत्त्वापादक । परमात्मा है अथवा नहीं, यह असत्त्वापादक । परमात्मा है अथवा नहीं, यह असत्त्वापादक है । परमात्मा का भान नहीं होता है, यह अभानापादक है)
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वह परमात्मा का आदि = पूर्व का भक्त था(दादूपंथ में दादूजी को सनकादि मुनि का अवतार माना गया है । बषनांजी का यहाँ इसी ओर संकेत है) और उसका दादूदयाल था ।
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बषनांजी कहते हैं, दादूजी महाराज तो अब इस संसार में प्रत्यक्ष रूप में प्राप्त नहीं है । अतः यदि मुझे निश्चय ही उससे जाकर मिलूंगा तथा उससे भगवच्चर्चा करुंगा ॥२०॥
(क्रमशः)
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