सोमवार, 21 अक्तूबर 2024

*श्री रज्जबवाणी, समता निदान का अंग १०*

🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*जब पूरण ब्रह्म विचारिये, तब सकल आत्मा एक ।*
*काया के गुण देखिये, तो नाना वरण अनेक ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साँच का अंग)*
================
सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
*समता निदान का अंग १०*
जाति कुजाति भई सम सारिखी१,
नाम निरंजन में जब आये ।
तांबे रु लोह को अंतर२ भागो जी,
कंचन होत है पारस लाये ॥
भार अठारह जु आमल आकले३,
चन्दन संग सुगंध कहाये ।
हो रज्जब आगि में आगि भये सब,
काष्ठ हि के कुल४ भेद जराये५ ॥४॥
.
पारस के लगाते ही तांबे और लोहे का भेद२ भाग जाता है और दोनों सुवर्ण हो जाते हैं ।
अठारह भार वनस्पति के आमले और आकड़े३ आदि सभी चन्दन के संग से सुगंध युक्त होकर चन्दन कहलाते हैं ।
सम्पूर्ण काष्ठ अग्नि में पड़ कर अग्नि रूप हो जाते हैं, अग्नि काष्ठ के सम्पूर्ण४ भेदों को जला५ डालता है ।
वैसे ही जब निरंजन ब्रह्म के नाम जप रूप साधना में आ जाते हैं तब समता प्राप्त हो जाने से, जाति कुजाति समान१ ही हो जाती है, कोई प्रकार का भेद नहीं रहता ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें