रविवार, 27 अक्तूबर 2024

*श्रीधरजी स्वामी*

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*मन ताजी चेतन चढै, ल्यौ की करै लगाम ।*
*शब्द गुरु का ताजणा, कोई पहुँचै साधु सुजान ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*श्रीधरजी स्वामी*
*छप्पय-*
*उत्कृष्ट-धर्म भागवत में, श्रीधर ने वर्णन कर्यो ॥*
*अज्ञानी त्रय कांड, मिले सब कोई भाखे ।*
*ज्ञानी अरु कर्मेष्ट, अर्थ को अनर्थ दाखै१ ॥*
*राखी भक्ति प्रधान, करी टीका विस्तीरन ।*
*अगम२ निगम३ अविरुद्ध, बहुरि भारत की सीरन४ ॥*
*कृपा सु परमानन्द की, माधव जी ऊपरि धरयो ।*
*उत्कृष्ट धर्म भागवत में, श्रीधर ने वर्णन करयो ॥३०३॥*
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श्रीधर स्वामीजी ने श्रीमद्भागवत में परम धर्म(भागवद्धर्म) का यथार्थ वर्णन किया है अर्थात् भागवत में जैसा व्यासजी और शुकदेवजी का आशय था वही अपनी टीका द्वारा स्पष्ट किया है ।
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सभी अज्ञानी लोग-कर्मकाण्ड, उपासना काण्ड और ज्ञान काण्ड, इन तीनों काण्डों को मिलाकर अर्थ करते थे । कारण अज्ञानी होने से तीनों का यथार्थ स्वरूप जानते ही नहीं थे । ज्ञानी (वेदान्ती) सब प्रसंगों को अपनी ओर खेंचते थे और कर्म को ही इष्ट मानने वाले पूर्व मीमांसक कर्मठ और अपनी ओर खेंचते थे, इस प्रकार अर्थ का अनर्थ करके बताते१ थे ।
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किन्तु श्रीधर स्वामी ने जिन वाक्यों में भक्ति प्रधान थी, उनका अर्थ भक्ति प्रधान ही किया है । ज्ञान तथा कर्म की ओर नहीं खींचा है और विस्तारपूर्वक अर्थ किया है । आपकी भागवत की टीका आगम२(षट् शास्त्र) और वेदों के अनुकूल है और पंचम वेद३ महाभारत रूप सरोवर की तो मानो धारा४ ही हैं अर्थात् महा भारत से भी मिलती हुई है ।
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आप पर अपने गुरु परमानन्दजी की तो सत्कृपा थी ही, भगवान् विन्दु माधवजी ने भी आपकी भागवत को सब टीकाओं के ऊपर रख कर श्रेष्ठ बताया था ॥३०३॥
(क्रमशः)

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