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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४४. रस कौ अंग ४५/४८*
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कहि जगजीवन निसा गत, दिन मंहि जाइ समाइ ।
रांम भगति करि जन लहै, हरि रस भैदै भाइ ॥४५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि रात जाने पर दिन में समा कर भी भक्त जन भक्ति में लीन रहते हैं उन्हें रात दिवस से कोइ फर्क नहीं पड़ता है । वे तो हरि स्मरण आनंद में ही मगन रहते हैं ।
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रांम राति रस नांम सौं, रंग भरि रमै मुरारि ।
कहि जगजीवन रांम रुचि, ररंकार धुंनि च्यारि ॥४६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम रंग में आनंदरस में रंग कर मुरारी जी के भजन में जो रम जाये उसे चारो पहर राम रंकार की धुन सुनती है ।
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रस मंहि झूलै आतमां, रोम रोम धुंनि नांम ।
कहि जगजीवन नांम पिछांणै, रस पीवै रटि रांम ॥४७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम नाम के रस आनंद में रोम रोम से आनंद ध्वनि आती है । जो इस आनंद का महत्व पहचानते हैं वे ही राम रट कर इस रस का पान करते हैं ।
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रांम क्रिपा रस पीवतां, साखी सबद अनेक ।
कहि जगजीवन फहम१ करि, देखै तो हरि एक ॥४८॥
(१. फहम करि=समझ कर)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जन जन राम कृपा से इस आनंदरस का पान कर अनेक साखी व सबद कहते सुनते हैं । समझ कर देखें तो प्रभु तो एक ही है ।
(क्रमशः)
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