गुरुवार, 3 अक्तूबर 2024

*शंकराचार्यजी*

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*संसार विचारा जात है, बहिया लहर तरंग ।*
*भेरे बैठा ऊबरे, सत साधु के संग ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*शंकराचार्यजी*
*छप्पय-*
*उत्तम धर्म सथापने, शंकराचार्य जु प्रकटे ॥*
*पाखंडी अनईश्वरी, अरु जैन कुतरकी ।*
*बौधमती उत् श्रृंखली, विमुखी नर नरकी ॥*
*अमरादिक सब जीत, फेरि सत मारग लाये ।*
*ईश्वर का अवतार, जान हरि जन हर्षाये ॥*
*राघव भक्ति उदय किरण, अज्ञानी तम भ्रम घटे ।*
*उत्तम धर्म सथापने, शंकराचार्य जु प्रकटे ॥३००॥*
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बौद्ध, जैन वाममार्गी आदि के द्वारा सनातन धर्म में विध्न खड़ा होने पर, उस सर्वश्रेष्ठ सनातन धर्म की पुनः पूर्ववत् स्थापना करने के लिये श्रीशंकराचार्य प्रकट हुए थे । उनने पाखंडी, ईश्वर को नहीं मानने वाले नास्तिक, कुतर्क करनेवाले जैन और बौद्ध मत वाले, ईश्वर से विमुख नरक में जाने वाले वाममार्गी और अमरचंद जती आदि सबको शास्त्रार्थ द्वारा तथा अपनी योग शक्ति द्वारा जीतकर सन्मार्ग में लगाया था ।
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आपको महादेवजी का अवतार जानकर हरिभक्त अत्यन्त हर्षित हुये थे । छिपी हुई भगवद्भक्ति रूप किरण को आपने प्रबोध सुधाकर आदि ग्रन्थों के द्वारा प्रकट किया था । उससे फिर अज्ञानियों का भ्रम रूप अंधकार कम होकर उन को भगवत् प्राप्ति का मार्ग यथार्थ रूप से भासने लगा था । इस प्रकार आपने सनातन धर्म का उद्धार किया था ॥३००॥
(क्रमशः)

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