सोमवार, 21 अक्तूबर 2024

*राखाल, शशि आदि भक्तों के संग में*

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*दादू अमृत रूपी आप है,*
*और सबै विष झाल ।*
*राखणहारा राम है, दादू दूजा काल ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद १३९. श्रीरामकृष्ण का भक्तों के प्रति प्रेम*
*(१)राखाल, शशि आदि भक्तों के संग में*
काशीपुर के बगीचे में शाम को राखाल, शशि और मास्टर टहल रहे हैं । श्रीरामकृष्ण बीमार हैं, बगीचे में चिकित्सा कराने के लिए आये हुए हैं । वे ऊपर के कमरे में हैं । भक्तगण उनकी सेवा कर रहे हैं । आज बृहस्पतिवार है, २२ अप्रैल, १८८६ ।
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मास्टर - वे तो तीनों गुणों से परे एक बालक हैं ।
शशि और राखाल - श्रीरामकृष्ण ने वैसा ही कहा है ।
राखाल - जैसे एक ऊँची मीनार । वहाँ बैठने पर सब समाचार मिलता रहता है, सब कुछ देख सकते हैं, परन्तु वहाँ कोई पहुँच नहीं सकता ।
मास्टर - उन्होंने कहा है, 'इस अवस्था में सदा ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं ।' विषयरूपी रस के न रहने के कारण सूखी लकड़ी आग जल्दी पकड़ती है ।
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शशि - बुद्धि में कितने भेद हैं, यह वे चारु को बतला रहे थे । जिस बुद्धि से ईश्वर की प्राप्ति होती है, वही बुद्धि ठीक है । जिस बुद्धि से रुपया मिलता है, घर बनता है, डिप्टी मैजिस्ट्रेट या वकील होता है, वह बुद्धि नाममात्र की है । वह पतले दही की तरह है, जिसमें पानी का भाग अधिक है । उसमें सिर्फ चिउड़ा भीग सकता है । वह जमे दही की तरह अच्छा दही नहीं है । जिस बुद्धि से ईश्वर की प्राप्ति होती है, वही बुद्धि जमे दही की तरह उत्कृष्ट कहलाती है ।
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मास्टर – अहा ! कैसी सुन्दर बात है !
शशि - काली तपस्वी ने श्रीरामकृष्ण से कहा था, “आनन्द क्या होगा ? आनन्द तो भीलों के भी है । जंगली लोग भी 'हो हो' करके नाचते और गाते हैं ।"
राखाल - उन्होंने (श्रीरामकृष्ण ने) कहा, 'यह क्या ? ब्रह्मानन्द और विषयानन्द क्या एक हैं ? जीव विषयानन्द लेकर है । सम्पूर्ण विषयासक्ति के बिना गये ब्रह्मानन्द कभी मिल नहीं सकता । एक ओर रुपये और इन्द्रिय-सुख का आनन्द है और दूसरी ओर है ईश्वर-प्राप्ति का आनन्द । क्या ये दो कभी समान हो सकते हैं ? ऋषियों ने इस ब्रह्मानन्द का भोग किया था ।'
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मास्टर - काली इस समय बुद्धदेव की चिन्ता करते हैं न; इसलिए आनन्द के उस पार की बातें कह रहे हैं ।
राखाल - श्रीरामकृष्ण के पास भी बुद्धदेव की बातचीत काली ने उठायी थी । श्रीरामकृष्णदेव ने कहा, 'बुद्धदेव अवतार-पुरुष हैं । उनके साथ किसी की क्या तुलना ? बड़े घर की बड़ी बातें ।' काली ने कहा, 'ईश्वर की शक्ति ही तो सब कुछ है । उसी शक्ति से ईश्वर का आनन्द मिलता है, और उसी से विषय का भी ।'
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मास्टर - फिर उन्होंने क्या कहा ?
राखाल - उन्होंने कहा ‘यह कैसा ? - सन्तानोत्पत्ति करने की शक्ति और ईश्वर-प्राप्ति की शक्ति दोनों क्या एक है ?’
(क्रमशः)

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