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*अपना अपना कर लिया, भंजन माँही बाहि ।*
*दादू एकै कूप जल, मन का भ्रम उठाहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साँच का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*समता निदान का अंग १०*
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जाति कुजाति रु उत्तम मध्यम,
जाति के जोर न ज्योति को ज्वै१ है ।
बेड़ी भली नहिं सोने रु लोह की,
पाँय परै कछु पंथ न ह्वै है ॥
नींद को नाश न जौंन२ अँधेरे में,
सूर बिन सुख नीद हि स्वै३ है ।
हो रज्जब राम मिलै नहीं ऐसे जु,
जोलौं न प्रेम को बौंहडो४ ब्बे५ है ॥५॥
सुजाति, कुजाति, उत्तम, मध्यम जाति के बल से प्रभु प्राप्त नहीं होते, वे तो ज्ञान ज्योति को ही देखते१ हैं, अर्थात ब्रह्म ज्ञान होने पर ही ब्रह्म साक्षात्कार होता है ।
जैसे बेड़ी सुवर्ण की हो या लोहे की हो दोनों अच्छी नहीं हैं, पैरों में पड़ने पर दोनों से ही मार्ग चलना नहीं होता, अर्थात नहीं चला जाता । वैसे ही सुजाति और कुजाति दोनों का ही अभिमान साधक जो प्रभु प्राप्ति के साधन मार्ग में नहीं चलने देता है ।
जो२ अंधेरी रात्रि होती है उसमें भी निद्रा का नाश नहीं होता, सूर्य के अभाव में सुख की निद्रा में सोते३ हैं । वैसे ही कुजाति होने पर भी प्रभु प्राप्ति का आनन्द लेते हैं ।
हे सज्जनों ! जब तक हृदय भूमि में प्रेम रूप वृक्ष नहीं बोते५ हैं, तब तक ऐसी जाति आदि के अभिमान से राम नहीं मिलते हैं ।
(क्रमशः)
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