बुधवार, 23 अक्तूबर 2024

*आनंदा हरि आनंदा*

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*झिलमिल झिलमिल तेज तुम्हारा,*
*परगट खेलै प्राण हमारा ॥*
*नूर तुम्हारा नैनों मांही,*
*तन मन लागा छूटै नांही ॥*
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*आचार्य प्रशंसा ॥*
आनंदा हरि आनंदा ।
हिलि मिलि ऐकै बैन बजावै, गरीबदास अरु गोबिंदा ॥टेक॥
दरिगह माँहि दूसरौ दादू, बोलै मीठी बाणी ।
एक शब्द मैं सब कुछ बूझ्या, साह सलेम बिनाणी ॥
सेवग कै घटि स्वामी बोल्या, सबहिन कै मनि भावै ।
पातिसाहि का जिनि मन मोह्या, औराँ की कौंण चलावै ॥
हरम सबै दरसनि आई, सबही चीर उतारा ।
गरीबदास का दरसन कीया, धनि धनि भाग हमारा ॥
जे थे दुष्ट मुष्ट करि लीने, ग्यान खड़ग परहारे ।
सुणि करि कथा कहण सब लागे, हाँजी हाँजी सारे ॥
नगर नराणैं आनँद हूवौ, साधाँ मंगल गाया ।
बषनां कहै बिगसता हसता, गरीबदास घरि आया ॥२१॥
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बैन = बीणा; यहाँ “कार्य” से तात्पर्य है । गरीबदासजी गोविंद स्वरूप हैं, क्योंकि “ब्रह्मविद्ब्रम्हैव भवति” मुण्डकोपनिषद् ॥ “जानत तुम्हहि तुम्हहि होइ जाहीं ॥” मानस ॥ “ब्रह्म रूप अहि ब्रह्मविद, ताकी वाणी वेद ॥” विचारसागर ॥ गोविन्द और गरीबदास दोनों अभिन्न होने से एक ही काम करते हैं, दरिगह = नरायणा का दादूमन्दिर । बूझ्या = समझ गया । बिनाणी = विज्ञानी; विशिष्ट ज्ञानी ॥ “ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः “ गीता ७/२ ॥ यहाँ ज्ञान परोक्षज्ञान का तथा विज्ञान अपरोक्षज्ञान का वाचक है । बषनांजी ने सलीम को बिनाणी = विज्ञानी कहकर विचक्षण ज्ञानी कहा है । किन्तु यहाँ यह स्पष्टता के साथ समझ लेना चाहिये कि एक शब्द में समझने में सलीम की महानता नहीं है अपितु महानता गरीबदासजी की है कि उनमें ऐसी विलक्षण प्रतिभा थी कि उन्होंने सलीम जैसे राजनीतिक व्यक्ति को भी एक ही शब्द सुनाकर विज्ञानी बना दिया । दादूजी ने रज्जबजी आदि अनेकों संत शिष्यों को एक शब्द सुनाकर ही विज्ञानी बना दिया था । हरम = बादशाह का रणवास; बादशाह की सभी स्त्रियाँ, दासियाँ और साथ के अन्य मातहतों की स्त्रियाँ आदि । चीर = परदा, घूँघट । मुष्ट = मुठ्ठी में कर लिये; वश में कर लिये । हारे = दुष्ट हार गये थे । बिगसता = प्रफुल्लित होते हुए ।
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गोविन्द स्वरूप गरीबदासजी एक ही कार्य, हिलि-मिलि = समभाव से अखंडानंद रूप हुए अखंडानंद स्वरूप का स्मरण करते हैं ।
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वे दादूमन्दिर में वीणा बजाते और उस पर गाते हुए तथा सत्संगियों के मध्य मीठी वाणी में चर्चा करते हुए दादू जैसे ही लगते हैं; मानों वे दादूजी ही हों । विज्ञानी सलीमशाह की गरीबदासजी ने एक ही शब्द में समस्त आध्यात्मिक शंकाएँ निर्मूल कर दीं ।
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उस समय ऐसा लग रहा था मानों गरीबदासजी(सेवक) के मुख से स्वयं परब्रह्म परमात्मा ही बोल रहा है । वे मधुर वचन सबही को प्रिय लग रहे थे । उन्होंने बादशाह सलीमशाह के मन को मोहित कर लिया था फिर और श्रोताओं की तो कौन कहे ।
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बादशाह का सारा जनाना घूंघट हटाकर गरीबदासजी के दर्शनार्थ आया था । उन्होंने गरीबदासजी का दर्शन करके अपने भाग्य को धन्य कहा ।
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जो दुष्ट-विरोधी थे, उनको ज्ञान रूपी खड़ग से हराकर गरीबदासजी ने अपने वश में कर लिया । गरीबदासजी की कथा को सुनकर सभी = प्रशंसक व विरोधी हाँजी-हाँजी = प्रशंसा, कथा बहुत श्रेष्ठ है, हम आपकी अधीनता स्वीकार करते हैं, करने लगे ।
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यह आनंदप्रद उत्सव ग्राम नारायणा में संपन्न हुआ । साधु - संतों ने मंगलगान किये । बषनांजी कहते हैं, उस समय प्रफुल्लित = आनन्दित होते हुए प्रसन्नमुद्रा में गरीबदासजी दादूमंदिर में पधारे ॥२१॥
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अन्तर्कथा : भारत का शहंशाह सम्राट जहाँगीर अजमेर के मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में सिजदा करने को आया था । जब नरायणा गाँव आया, तब उसे बताया गया की इस गाँव में एक पहुँचा हुआ फकीर रहता है ।
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उसके गुरु से शहंशाह अकबर ने भी फतहपुर सीकरी में भेंट करके आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था । आपको भी इस फकीर-साधु का दर्शन तथा सत्संग-लाभ लेना चाहिये । तब जहाँगीर ने अपनी स्वीकृति प्रदान करी थी । दोनों के मध्य सत्संग हुआ जिसकी कुछ झलक उक्त पद्य में विद्यमान है ।
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जाते समय जहाँगीर ने सेवा फरमाने की प्रार्थना की किन्तु अपरिग्रही गरीबदासजी ने भेंट लेने से इंकार कर दिया । जब बादशाह माना ही नहीं तब एक जलस्त्रोत कूप तथा एक मकान स्वीकार करने को तैयार हुए ।
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कूप का नाम गरीबसागर ख्यात हुआ जो आज भी दादूधाम नरायना में विद्यमान है । जो मकान बनाया वह कुछ समय पूर्व तक अच्छी स्थिति में था अब धीरे-धीरे देखभाल के अभाव में जर्जर होता जा रहा है । वह दादूधाम के वायव्यकोण में अवस्थित है ।
(क्रमशः)

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