बुधवार, 16 अक्तूबर 2024

*नीर चढ्यो बहु नाव दिखावत*

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*दादू डरिये लोक तैं, कैसी धरहिं उठाइ ।*
*अनदेखी अजगैब की, ऐसी कहैं बनाइ ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*जान अवेश१ हि शिष्य गये महि२,*
*मोह मुदग्गर ग्रन्थ उचार्यो । *
*कान पर्यो तन त्याग बरे३ निज,*
*दास नये अपनों पन पार्यो ॥*
*जीत जती नृप पै चढ जावत,*
*बैठ करें चिक४ मायक डार्यो ।*
*नीर चढ्यो बहु नाव दिखावत,*
*वेग चढ़ो नहिं बूड़त धार्यो ॥४२०॥*
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शंकराचार्य जितने काल की अवधि शिष्यों को बता गये थे, सो काल व्यतीत हो गया किन्तु गुरुजी अपने शरीर में नहीं आये । तब शिष्यों ने विचार किया कि कहीं दारादि के मोहावेश१ में समय का ज्ञान नहीं रहा है । फिर शिष्यों ने राजदरबार के भीतर२ जाकर 'मोह मुद्रर' ग्रंथ उच्चारण करके राजा को सुनाया ।
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श्रवणों में पड़ते ही राजा का शरीर त्यागकर अपने शरीर में प्रवेश४ किया । दिया सेवक शिष्यों ने आप को प्रणाम करते हुये कहा आयात कर आपके शरीरया, उसको पूरा कर दिया इससे हमको अति प्रसन्नता है ।" आपने कहा- "तुमने भी मेरी आज्ञा का पालन किया है, इससे मुझे भी प्रसन्नता है ।"
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फिर शंकराचार्यजी ने भारती के कामशास्त्र सम्बन्धी प्रश्नों का उत्तर देकर उसे जीता । पश्चात् जैन जतियों को जीता । जैन जतियों ने निश्चय किया कि अब हम शंकराचार्य से हार गये हैं । राजा शंकराचार्य का मत ग्रहण करेगा । अतः हम राजा को शंकराचार्य के सहित मार डालें । तब कोई कुमंत्रणा करके शिष्यों के सहित मायावी जतियों का गुरु, राजा तथा शंकराचार्य के पास बहुत ऊँची छत पर जा बैठा ।
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फिर उसने सब पर अपनी माया का पड़दा४ डाल कर सबको दिखाया कि प्रलय कालीन समुद्र के समान पानी बढ़ता आ रहा है और वह छत के पास आ गया है । तब उसने उस जल में एक बहुत बड़ी मायिक नौका भी दिखाई और वह तैरती हुई छत के पास आ लगी । जतियों ने गुरु ने राजा से कहा- "शीघ्र इस नौका पर चढ़ो, नहीं चढ़ोगे तो जल की धारा में डूब जाओगे" ॥
(क्रमशः)

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